श्रीभागवत प्रसाद सिंह मेमोरियल बीएड कॉलेज में नेशनल वेबिनार का आयोजन
उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार के विषय विशेषज्ञों ने दिया व्याख्यानप्रतिनिधि, औरंगाबाद नगर.
औरंगाबाद मुख्यालय से चंद किमी की दूरी पर स्थित देव मोड़ के समीप संचालित श्रीभागवत प्रसाद सिंह मेमोरियल बीएड कॉलेज में विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस के अवसर पर नेशनल वेबिनार का आयोजन किया गया. इस वेबिनार का मुख्य विषय प्राकृतिक संपदा की सुरक्षा एवं संरक्षण था. इसमें शामिल विशेषज्ञों ने व्याख्यान दिया. नेशनल वेबिनार के मुख्य अतिथि व श्री भागवत प्रसाद सिंह मेमोरियल बीएड कॉलेज के निदेशक अभय कुमार सिंह ने कहा कि प्रकृति संरक्षण के संबंध में हम जिन प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हैं, उनकी देखभाल, सुरक्षा करना हमारा उत्तरदायित्व होना चाहिए. जो लोग एक भी पेड़ नहीं लगाते, वह शपथ लें कि हम लकड़ी से बनी कोई भी चीज जैसे-कुर्सी, मेज, सोफा, बेड, खिड़की, दरवाजा आदि का इस्तेमाल नहीं करेंगे. पेड़-पौधों का रोपण दिखावे के लिए नहीं होना चाहिए, बल्कि अंतरमन से उसके संरक्षण, विकास एवं सुरक्षा के लिए होना चाहिए. पेड़-पौधों की देखभाल अपने बच्चों की भांति करनी होती है, तभी वह एक दिन बड़े पेड़ बनकर फल, फूल, छाया, स्वास्थ्य, तापमान नियंत्रण, जलवायु संतुलन में सहायक सिद्ध होंगे.एसबीएम शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय हजारीबाग के प्राचार्य डॉ शशिकांत यादव ने कहा कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. इससे पहले वह जैविक प्राणी है. समाज का मुख्य उद्देश्य समानता, संतुलन व समायोजन होना चाहिए न कि भेदभाव, जातिवाद, ऊंच-नीच, गरीब-अमीर आदि. मानव संसाधन को जाति, धर्म, संप्रदाय, भाषा, क्षेत्र आदि से मुक्त होकर मानवता की सेवा करना है. मनुष्य सबसे बुद्धिमान प्राणी है. उसे अपनी बुद्धि का प्रयोग सकारात्मक दिशा में करना चाहिए.
उत्तराखंड से डॉ जयप्रकाश कंसवाल, विभागाध्यक्ष, योग विज्ञान विभाग श्री देवसुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय ने कहा कि प्रकृति शब्द का अर्थ-पूर्व की कृति अर्थात जो पहले से ही स्वनिर्मित है. चौरासी लाख योनियों के लिए चौरासी लाख योग का वर्णन किया गया है. प्राकृतिक संतुलन स्थापित करने में जीव-जंतु, पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़े का महत्वपूर्ण स्थान है. यदि हम किसी को प्राण दे नहीं सकते, तो हमें उसके प्राण लेने का अधिकार भी नहीं है. धर्म समाज कॉलेज अलीगढ़ के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ उमेंद्र सिंह ने कहा कि पृथ्वी हमारी माता है, प्रकृति परमेश्वर है, एक पेड़ मां के नाम अर्थात धरती माता के नाम लगाना है. सुबह उठकर धरती माता का चरण स्पर्श करना व प्रणाम करने का संस्कार बच्चों में विकसित किया जाये. सभी तरह के प्राकृतिक असंतुलन का सहन पृथ्वी माता ही कर रही है. जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बादल फटने, बाढ़, तूफान, चक्रवात आदि के रूप में दिखाई पड़ता है. इसीलिए, धरती माता पर सब कुछ टिका हुआ है. उनकी सुरक्षा एवं संरक्षण करना हम सबका नैतिक, वैयक्तिक एवं सामूहिक उत्तरदायित्व है.जल है, तो जीवन है
श्री भागवत प्रसाद सिंह मेमोरियल बीएड कॉलेज के प्राचार्य डॉ अरविंद कुमार यादव ने जल संसाधन के संरक्षण पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जल है, तो जीवन है. जल है, तो कल है. जिस प्रकार सभी वस्तुएं सीमित मात्रा में हैं, उसी प्रकार जल भंडार भी है. भौगोलिक दृष्टि से 71 प्रतिशत हिस्सा जल का है, किंतु उपयोग करने के लिए जल लगभग एक प्रतिशत ही है. जल संचय से अधिक महत्वपूर्ण जल के दुरुपयोग को रोकना है. जल संसाधन से ही सभी जीव-जंतुओं, पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़े आदि का उद्भव एवं विकास हुआ है.जैव-विविधता को समझना होगा
श्री भागवत प्रसाद सिंह मेमोरियल बीएड कॉलेज के आइक्यूएसी को-ऑर्डिनेटर दीपक कुमार सिंह ने वन एवं वायु संपदा की सुरक्षा व संरक्षण पर विचार व्यक्त किया. कहा कि प्रकृति की रक्षा जीवन की रक्षा है. वायुमंडल में विभिन्न गैसों जैसे नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, ओजोन, कार्बन मोनोऑक्साइड, नियॉन, हीलियम आदि का मिश्रण है. इनमें से जीवित रहने के लिए जरूरी वायु 21 प्रतिशत ही है, जिसे ऑक्सीजन, प्राण वायु, जीवनदायिनी गैस आदि के नाम से जाना जाता है. वन संपदा प्राण वायु को बढ़ाते हैं. रात में कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण करके दिन में सूर्य की रोशनी से ऑक्सीजन पैदा करते हैं. जैव-विविधता को समझना व संतुलन बनाये रखना होगा, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र सक्रिय बना रहे. नेशनल वेबिनार के समापन से पूर्व धन्यवाद ज्ञापन असिस्टेंट प्रो रामविजय चौरसिया ने किया.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है