डैम में गेट लगने से पलामू व गढ़वा जिला के लोगों को पेयजल समस्या से मिलेगी निजात
1972 से अधर में लटकी है उत्तर कोयल नहर परियोजना
स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने कार्य शुरू होने का किया पोस्ट
मगध प्रक्षेत्र के किसानों के लिए जीवन रेखा है कोयल नहर
प्रतिनिधि, अंबा.
मगध प्रक्षेत्र के किसानों की जीवन रेखा माने जाने वाली उत्तर कोयल नहर सिंचाई परियोजना के कुटकु डैम में फाटक लगाये जाने की दिशा में एक बार फिर सुगबुगाहट शुरू हो गयी है. डैम में फाटक लगाने का कार्य वर्ष 1972 से अधर में लटका है. जानकारी के अनुसार कुटकु डैम में लगाने के लिए फाटक का निर्माण कोटा में कराया गया है, जो बन कर तैयार है. चार दिन पूर्व बिहार सरकार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने अधर में लटकी उत्तर कोयल नहर परियोजना का कार्य 53 साल बाद फिर से शुरू होने का पोस्ट किया था. इसके बाद से नहर का मुद्दा सोसल मीडिया पर छाया हुआ है. सोशल मीडिया पर पोस्ट शेयर करने वाले लोग इस कार्य के लिए पूर्व सांसद सुशील कुमार सिंह के भागीरथ प्रयास की सराहना कर रहे हैं. दर्जनों लोगों ने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए सांसद की पहल की प्रशंसा की है. हालांकि कुटुंबा विधायक सह कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजेश कुमार ने भी उत्तर कोयल नहर का कार्य पूरा करने व फाटक के लिए लगातार विधानसभा में मामला उठाया है. हालांकि, राजनीतिक पार्टी से जुड़े लोग व समाजसेवी सोशल मीडिया पर उत्तर कोयल नहर के मंडल डैम का जो फोटो शेयर कर रहे हैंं, वह कुटकु डैम का प्रतीत नहीं होता है. शेयर फोटो में डैम की नयी संरचना दिखायी जा रही है. निर्माण काल की बनावट व संरचना कई वर्ष पुराना है व उसमें फाटक लगाया जाना है. जल संसाधन विभाग के अधिकारियों ने भी उक्त फोटो से अनभिज्ञता जताई है.विस्थापित परिवार के पुनर्वास की कार्रवाई में आयी तेजी
पिछले दो सप्ताह से पुनर्वास के काम में भी तेजी आयी है. चार दिन पूर्व झारखंड के गढ़वा जिला के उपायुक्त दिनेश कुमार यादव ने रंका प्रखंड की विश्रामपुर पंचायत अंतर्गत बड़वाह टोला में चिह्नित पुनर्वास स्थल का निरीक्षण कर अधीनस्थ अधिकारियों को आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया है. निरीक्षण के क्रम में कई वरीय पदाधिकारी मौजूद रहे. बता दें कि गढ़वा और लातेहार जिले की सीमा पर पलामू के घने जगंलों में मंडल गांव के करीब कुटकु डैम है. डैम के दोनों तरफ पहाड़ है. डैम निर्माण के क्रम में एक तरफ के पहाड़ को दूसरे तरफ के पहाड़ से जोड़ा गया है. ऐसे में फाटक लगाये जाने से आसपास का एक बड़ा भूभाग डूब क्षेत्र में चला जायेगा. ऐसी स्थिति में लोगों को मुआवजे की राशि का भुगतान कर पुनर्वास की व्यवस्था करना सबसे बड़े चुनौती रही है.
1972 में शुरू हुआ था परियोजना का कार्य
उत्तर कोयल नहर परियोजना का कार्य वर्ष 1972 में शुरू हुआ था. उस समय बिहार का विभाजन नहीं हुआ था. किसान काफी उत्साहित थे. ऐसे में वर्तमान झारखंड राज्य का पलामू, बिहार का औरंगाबाद व गया जिले के एक बड़े भूभाग में सिंचाई के लिए यह जीवन रेखा मानी जा रही थी. खासकर औरंगाबाद जिले के लिए यह नहर वरदान साबित होने वाला था. वैसे कुटुंबा, नवीनगर, देव, बारूण औरंगाबाद, मदनपुर व रफीगंज प्रखंड क्षेत्र में सिंचाई के लिए यह मुख्य परियोजना थी. हालांकि, नहर की खुदाई के बाद डैम में फाटक लगाये जाने से वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा रोक लगा दी गयी थी. ऐसे में वर्ष 2007 से लेकर 2013 तक यह परियोजना मृतप्राय बन गया. यहां तक कि झारखंड में नहर के तटबंध पर 15 किलोमीटर की दूरी में हाइटेंशन का 403 बिजली का पोल खड़ा कर दिया गया था. वर्ष 2009 में सांसद बनने के बाद सुशील कुमार सिंह ने उक्त परियोजना के कार्य के लिए लोकसभा में आवाज उठायी. इसके बाद 2014 में पुनः दूसरी बार सांसद बनने के बाद उन्होंने भरपूर प्रयास किया. श्री सिंह के प्रयास से उस समय के तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावेड़कर मंडल डैम पहुंचे. उन्होंने रोक हटाने की घोषणा करते हुए जल्द ही फाटक लगवाने की बात कही थी.
वर्ष 2017 में दूसरी बार मिली स्वीकृति
वन एवं पर्यावरण विभाग भारत सरकार की ओर से रोक हटाए जाने के बाद 16 अगस्त 2017 को दूसरी बार परियोजना की स्वीकृति मिली. 2017 में 16 अरब 22 करोड़ 27 लाख रुपये की स्वीकृति मिली है. इसमें डैम में फाटक लगाया जाना, भीम बराज व नहर की अधूरे कार्य को पूरा किया जाना शामिल किया गया था. परियोजना के पुनः स्वीकृति के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका शिलान्यास किया . इसके बाद से नहर में लाइनिंग व सरंचनाओं के रिमॉडलिंग का कार्य जारी है. पर, अब तक डैम में फाटक लगाने का कार्य अधूरा है. जानकारी के अनुसार 1972 में जब सिंचाई परियोजना की स्वीकृति मिली, उस समय मात्र 30 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट था. परंतु जैसे-जैसे समय बीतता गयाखर्च करने की राशि में वृद्धि होती गई. 2017 में स्वीकृति मिलने के पूर्व इस परियोजना में 930 करोड़ रुपये से अधिक खर्च हुए हैं. ज्ञात हो कि उत्तर कोयल नहर का प्रोजेक्ट 1972 में बिहार एवं झारखंड दोनों राज्य में एक लाख 24 हजार हेक्टेयर भूमि सिंचित करने के लक्ष्य के साथ शुरू किया गया था. बिहार- झारखंड विभाजन के समय बिहार को 90 प्रतिशत व झारखंड को 10 प्रतिशत भूमि सिंचित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था. वैसे डैम पूरा होने से पलामू व गढ़वा जिला के लोगों को पेयजल समस्या से निजात मिलेगी.
डैम की होगी स्ट्रैंथ जांच: सुशील सिंह
पूर्व सांसद सुशील कुमार सिंह ने कहा कि उत्तर कोयल नहर सिंचाई परियोजना के अधूरे कार्य को पूर्ण कराकर मगध की भूमि को लाल पानी से सिचिंत करने के लिए मैं प्रयासरत्त हूं. बीच में कई तरह की अड़चनें आई, जिसे दूर कर लिया गया है. फाटक बन कर तैयार है. डैम के स्ट्रक्चर कि स्ट्रैंथ जांच की बात सामने आयी है. स्ट्रैंथ जांच के दौरान यह देखा जायेगा कि पूर्व में बने डैम का स्ट्रक्चर फिलहाल कामयाब है, या नहीं. जांच की प्रक्रिया होने के बाद फाटक लगाने की कार्रवाई की जायेगी.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है