पति की लंबी उम्र की कामना
सावन में शिव भक्ति और पति परमेश्वर के प्रति आस्था का अनूठा संगम
पंजवारा. श्रावण मास में धार्मिक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक का महत्व विशेष होता है. इस माह में सुहागिनों द्वारा मनाया जाने वाला मधुश्रावणी पर्व नारी आस्था, प्रेम और समर्पण का अद्भुत प्रतीक है. सावन में शिवभक्ति के साथ नवविवाहित स्त्रियों द्वारा यह पर्व निष्ठा, श्रद्धा और रीति-नीति से मनाया जाता है. मंगलवार को प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न गांवों में नवविवाहिताओं ने पारंपरिक परिधान पहनकर और सोलह श्रृंगार कर मां गौरी (पार्वती) और भगवान शिव की पूजा-अर्चना की इस अवसर पर आरती, भजन, पारंपरिक लोकगीतों की मधुर स्वर लहरियों से घर-आंगन गूंज उठे. पूजा स्थल पर नवविवाहिताएं फूल, अक्षत, दूर्वा, सुपारी, नारियल, फल, मिठाई और विशेष पूजन सामग्री लेकर पहुंचीं और मां पार्वती से अखंड सौभाग्य एवं अपने पति की दीर्घायु की कामना की. व्रती रिया कुमारी ने बताया कि यह पर्व उन्होंने अपने पति की लंबी उम्र और सुखमय दांपत्य जीवन के लिए नियमपूर्वक किया है. यह व्रत सावन माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से आरंभ होकर शुक्ल पक्ष की तृतीया तक 14 दिनों तक चलता है. इन 14 दिनों तक हर दिन विशेष पूजा, कथा वाचन, भजन और पारंपरिक गीतों के साथ दिनचर्या निर्धारित रहती है. पर्व के अंतिम दिन नवविवाहिता के मायके की ओर से ससुराल में विशेष रूप से पूजन सामग्री, वस्त्र, श्रृंगार का सामान और पकवान भेजे जाते हैं. इस दिन सामूहिक पूजन के बाद सभी महिलाएं एक-दूसरे को हल्दी-कुमकुम लगाकर सुख-समृद्धि की कामना करती है. इस पर्व में सोलह श्रृंगार का विशेष महत्व होता है. जिसमें काजल, बिंदी, सिंदूर, चूड़ी, मेहंदी, मांगटीका, बिछुआ, नथ, हार, झुमका, पायल सहित अन्य श्रृंगारों से सजकर महिलाएं भगवान शिव-पार्वती की आराधना करती हैं. प्राचीन मान्यताओं के अनुसार मधुश्रावणी व्रत न केवल पति की लंबी उम्र के लिए लाभकारी है, बल्कि यह सुहागिनों को मानसिक और आध्यात्मिक शांति भी प्रदान करता है. इस अवसर पर सुहागिनों के चेहरे पर विशेष तेज और श्रद्धा का भाव देखा गया. सावन की हरियाली और शिवभक्ति के माहौल में यह पर्व क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान बन चुका है, जो नारी श्रद्धा और पारंपरिक मूल्यों को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का कार्य कर रहा है.
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