गौतम वेदपाणि, भागलपुर
भागलपुर जिले से गुजरने वाली पतित पावनी गंगा नदी का निर्मल जल लगातार प्रदूषित हो रहा है. भागलपुर जिले में गंगा नदी के किसी भी घाट का पानी पीने योग्य नहीं है. यह खुलासा बीते 13 जनवरी से सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) की ओर से भागलपुर समेत बिहार के विभिन्न गंगा घाटों के जल की शुद्धता को लेकर जारी रिपोर्ट में हुआ है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि भागलपुर जिले में गंगा नदी के किसी भी घाट के पानी को पीने योग्य बनाने के लिए एडवांस ट्रीटमेंट की जरूरत होगी. सुलतानगंज, महादेवपुर व कहलगांव घाट का पानी स्नान के योग्य है. भागलपुर नगर निगम क्षेत्र में 38 बड़े नाले का पानी गंगा बेसिन में गिरने के कारण बरारी गंगा घाट का पानी स्नान के भी योग्य नहीं है.
सुलतानगंज व महादेवपुर सबसे स्वच्छ घाट
बरारी गंगा घाट के प्रति 100 मिलीलीटर पानी में कॉलिफोर्म बैक्टीरिया की संख्या औसतन 35,000 यूनिट है, जो 2500 होनी चाहिए. यह 14 गुना अधिक है. हालांकि, सुलतानगंज गंगा घाट व नवगछिया के महादेवपुर घाट की स्थिति बहुत अच्छी है. यहां कॉलिफोर्म बैक्टीरिया की मात्रा 1300 पायी गयी, जो औसत से बेहतर है.
वहीं कहलगांव फेरी घाट में कॉलिफोर्म बैक्टीरिया की संख्या 2100 पायी गयी. ऐसे में जिले में सबसे स्वच्छ पानी सुलतानगंज व महादेवपुर घाट पर उपलब्ध है. इन घाटों पर जल में ऑक्सीजन की मात्रा भी मानक के अनुसार 5 से 6 मिग्रा/लीटर के आसपास है. बरारी घाट में ऑक्सीजन की मात्रा महज दो है.
कॉलिफोर्म को खाने वाला बैक्टीरियोफेज कम हो रहा
गंगा नदी के बायोडायवर्सिटी के जानकार व जेपी विवि छपरा के पूर्व कुलपति डॉ फारुक अली ने बताया कि पानी के प्रदूषण स्तर को बढ़ाने वाला कॉलिफॉर्म बैक्टीरिया को बैक्टीरियोफेज नामक वायरस खा जाता है. इस कारण गंगाजल को बोतल में रखने के बावजूद यह कई वर्षों तक खराब नहीं होता था. लेकिन अब स्थिति बदल गयी है. इसके कई कारण हैं. इनमें गाद से गंगा की गहरायी कम होना, डैम बनाकर इसके प्रवाह को रोकना, नालों का पानी नदी में बिना ट्रीटमेंट के गिराना, आम लोगों द्वारा केमिकल युक्त प्रोडक्ट का अधिक प्रयोग इत्यादि.
गंगा घाट | कॉलिफॉर्म की मात्रा | ऑक्सीजन की मात्रा |
बरारी | 35 हजार यूनिट | एमएल – 2.2 मिग्रा/लीटर |
सुलतानगंज | 1300 यूनिट | एमएल – 5 से 6 मिग्रा/लीटर |
महादेवपुर | 1300 यूनिट | एमएल – 5 से 6 मिग्रा/लीटर |
कहलगांव | 2100 यूनिट | एमएल – 5 से 6 मिग्रा/लीटर |
गंगा स्नान के शास्त्रीय विधान का पालन नहीं
आध्यात्मिक विशेषज्ञों का मानना है कि भागलपुर जिले के घाटों पर लाखों की संख्या में लोग गंगा नदी में स्नान करने आते हैं. खास तौर से पूर्णिमा, अमावस्या, एकादशी समेत अन्य मौकों पर. लोगों में गंगा नदी में साबुन-शैंपू लगाकर नहाने, स्नान के बाद कपड़े को नदी में धोने की प्रवृत्ति बढ़ी है. साथ ही घर की पूजा सामग्री के अपशिष्टों फूल, चावल, धूपबत्ती, अगरबत्ती के टुकड़े, मूर्तियां, प्लास्टिक, कपड़ा, मिट्टी, पत्तियां आदि को नदी में प्रवाहित कर देते हैं.
यह गंगा स्नान की धार्मिक-आध्यात्मिक मान्यता के एकदम विपरीत है. गंगा स्नान के लिए कुछ नियम होते हैं. जैसे गंगा स्नान करने से पहले सामान्य जल से अच्छे से नहाना होता है, गंगा नदी में शरीर का मैल नहीं निकालने, नहाते समय शरीर को हाथों से नहीं रगड़ने, साबुन-शैंपू का प्रयोग नहीं करने, स्नान करने के दौरान नदी में कुल्ला भी नहीं करने, स्नान करने से पहले या बाद में उसमें गंदे कपड़े नहीं धोने का नियम है.
गंगा नदी में रोज की तरह स्नान से अलग आस्था के साथ डुबकी लगाने का शास्त्रीय विधान है. डुबकी के पहले गंगा मैया का दर्शन करने, हाथ जोड़कर प्रणाम करने, गंगाजल को हाथ में लेकर अपने माथे से लगाने, नदी में प्रवेश करते समय सीधे पैर से नहीं जाने, गंगा स्नान के बाद शरीर को कपड़े से नहीं पोंछने व जल को शरीर में सूखने देने जैसे नियम हैं.
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