रसिद आलम/नवगछिया: Bihar News भागलपुर जिला के गोपालपुर के प्रखंड के तिरासी गांव के हवलदार रतन सिंह जुलाई के शुरुआती दिन में ही कारगिल में शहीद हुए थे . 2 जुलाई को रतन सिंह की शहादत को पूरे 26 वर्ष हो गए. उनके घर की दीवारों पर सेना की वर्दी में टंगी इनकी तस्वीरें आज भी उन क्षणों की याद को ताजा कर देती है, जब गगनभेदी नारों के बीच तिरंगे में लिपटा शहीद रतन सिंह का पार्थिव शरीर उनके घर पहुंचा था.
लड़ते हुए शहीद हुए थे रतन सिंह
ऑपरेशन कारगिल विजय के शहीद नवगछिया के गोपालपुर थाना क्षेत्र के तिरासी गांव निवासी बिहार रेजिमेंट के हवलदार रतन सिंह लड़ते हुए बलिदान हो गए थे. इनकी शहादत के बाद परिवार और गांव से बीस जवानों ने वर्दी पहन रतन सिंह को सच्ची श्रद्धांजलि भेंट की.
बेटे का दर्द: सरकार ने दी जमीन लेकिन अबतक नहीं मिला कब्जा
शहीद रतन सिंह की बहादुरी की चर्चा करते आज भी लोग नहीं थकते. रूपेश कुमार अपनी पीड़ा बयां करते हुए कहते हैं पिता की शहादत के बाद तो शहीद के परिवार को पांच एकड़ खेतीहर जमीन खेती करने के लिए दिया जाना था. तीन एकड़ जमीन बिहार सरकार ने दिया भी. लेकिन उस जमीन पर आजतक दखल कब्जा नहीं दिलवा पाए. जमीन बिहार सरकार का होने से पहले जो जमीन का मालिक था. वहीं जमीन जोत आबाद कर रहा है. ऑनलाइन जमीन का रसिद हमारे पिता के नाम से ही दिखा रहा है. किंतु जमीन पर कब्जा अभी तक नहीं मिला है.
बेटा शिक्षक बनकर युवाओं को फौजी बनने के लिए करते हैं प्रेरित
रूपेश कुमार बताते हैं कि घर में बड़ा होने के कारण सभी भाइयों और दो छोटी बहनों की देखरेख मेरे कंधों पर ही थी. मां का भी ख्याल रखना था. इसके चलते फौज में जाने की इच्छा त्यागनी पड़ी. तब, चचेरे भाइयों ने देश सेवा करने की ठानी. मैं गांव में ही शिक्षक बनकर उनका मार्गदर्शन करने लगा.
गांव में सिटी बजाकर युवाओं को दौडऩे के लिए करते थे प्रेरित
रूपेश बताते हैं कि पिता जी गांव वालों को फौज में जाने के लिए हमेशा प्रेरित करते थे. छुट्टियों में घर आते तो सुबह चार बजे ही जग जाते. सिटी बजाते हुए गांव में निकल पड़ते थे. सिटी की आवाज सुनकर गांव के बहुत सारे युवा उनके साथ मैदान जाते थे. मैदान में युवाओं को दौड़ व व्यायाम करवाते थे. फौज में भर्ती होने के तौर-तरीके बताते थे.
कई पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया था
कारगिल युद्ध में 29 जून 1999 की मध्य रात्रि में बिहार रेजिमेंट को पाकिस्तानी घुसपैठियों को मार भगाने की कमान सौंपी गई थी. 16 हजार 470 फीट की ऊंचाई पर जुबेर टॉप नामक चौकी को प्राप्त करने के लिए हवलदार रतन सिंह ने ऐड़ी चोटी लगा दी थी. दो जुलाई तक चली भीषण लड़ाई में दो पाकिस्तानी कमांडो और कई पाकिस्तानी सैनिक मारे गए थे. बिहार रेजिमेंट के दस सैनिक घायल हुए थे. हवलदार रतन सिंह दुश्मनों से लड़ते-लड़ते शहीद हो गए थे. रतन सिंह का जन्म 15 अप्रैल 1959 को हुआ था. 28 फरवरी 1979 को वे सेना में भर्ती हुए थे. सेवा काल के दौरान वे मुख्यालय 42 पैदल ब्रिगेड तथा 46 बंगाल बटालियन एनसीसी में भी पदस्थापित रहे.