जेएलएनएमसीएच से संबद्ध सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में शनिवार को नेफ्रोलॉजी विभाग की ओर से किडनी के विभिन्न रोगों, नयी तकनीक से इसके इलाज व बीमारी से बचाव विषय पर लेकर सीएमइ का आयोजन हुआ. कार्यक्रम का उद्घाटन जेएलएनएमसी के प्राचार्य डॉ हेमशंकर शर्मा, डॉ डीपी सिंह, पद्मश्री डॉ हेमंत कुमार, डॉ प्रतीक दास समेत कार्यक्रम में शरीक हुए किडनी रोग विशेषज्ञों ने किया. प्राचार्य ने कहा कि किडनी से जुड़ी बीमारी से पीड़ित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है. सीएमइ के आयोजन से स्थानीय चिकित्सकों को किडनी के रोगों के बेहतर तरीके से इलाज की जानकारी मिलेगी. क्योंकि हमारे देश में प्रत्येक साल सवा दो लाख लोगों को ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है. इंडियन सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजी ईस्टर्न जोन एवं एपीआइ के सहयोग से सीएमइ का आयोजन हुआ. मौके पर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ अजय कुमार सिंह, नोडल पदाधिकारी डॉ महेश कुमार, नेफ्रोलॉजी विभाग के डॉ हिमाद्री शंकर आदि थे. फोटो डॉ हेमंत कुमार का….
साल में तीन बार यूरिन जांच करायें
फोटो डॉ प्रतीक कुमार दास का:::::
आर्टिफिशियल किडनी बनाने की तकनीक पर खोज जारी
कोलकाता के नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ प्रतीक कुमार दास ने बताया कि हमें अपने किडनी के स्वास्थ्य पर ध्यान रखने की जरूरत है. देश में किडनी मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है. अगर किसी व्यक्ति का किडनी फेल हो जाता है तो ट्रांसप्लांट सबसे बेहतर उपाय है. ट्रांसप्लांट से पहले डोनर व पेशेंट के खून की जांच की जाती है. किडनी मरीजों के लिए डायलिसिस जरूरी है. आने वाले समय में आर्टिफिशियल किडनी को बनाने का काम चल रहा है. यह तकनीक आते ही डोनर को ढूंढने की समस्या खत्म हो जायेगी. किडनी की बीमारी से बचने के लिए हमें बीपी, शुगर, मोटापा व स्वस्थ जीवनशैली पर ध्यान देना होगा. किडनी डिजीज का एक कारण अनुवांशिक है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है