ईशु राज
जिले में आत्महत्या की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही हैं. खासकर युवाओं में यह प्रवृत्ति तेजी से बढ़ती दिख रही है. मामूली तनाव या पारिवारिक विवाद के चलते लोग जीवन लीला समाप्त करने जैसा कठोर कदम उठा रहे हैं. हाल में जिले के विभिन्न थाना क्षेत्रों से कई आत्महत्या के मामले सामने आए हैं. जून से जुलाई के शुरुआती सप्ताह में दर्जन से अधिक मामले दर्ज हुए हैं. इन मामलों से जाहिर हो रहा है आत्महत्या करने वालों में स्टूडेंट, युवा, नौकरी-पेशा वाले लोग शामिल हैं. इससे सामाजिक और पारिवारिक ताने-बाने पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. पढ़ाई का तनाव, मानसिक तनाव, असफल प्रेम संबंध और पारिवारिक कलह की बड़ी वजह बनकर उभरा है. यह स्थिति समाज के लिए चिंता की बात है. ऐसे मामलों से स्पष्ट हो रहा है कि युवाओं में तनाव से जूझने की क्षमता में कमी आ रही है.हाल के कुछ मामले, एक नजर में
-तिलकामांझी थाना क्षेत्र में इंटर का एक छात्र अपने कमरे में फंदे से झूलता मिला. परिजनों के अनुसार वह परीक्षा परिणाम को लेकर तनाव में था. पढ़ाई का दबाव और परिवार की उम्मीदें उसकी मानसिक स्थिति पर भारी पड़ गईं.– बरारी थाना क्षेत्र में 22 वर्षीय महिला ने पारिवारिक कलह से तंग आकर जहर खा लिया. इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. पड़ोसियों ने बताया कि घरेलू विवाद को लेकर उसका अक्सर विवाद होता था.
– 5 जुलाई को रंगरा थाना क्षेत्र में गर्लफ्रेंड की खुदकुशी के बाद प्रेमी ने भी जान दे दी. बताया गया कि किसी बात को लेकर दोनों के बीच विवाद हुआ था.– 12 जून को जोगसर थाना क्षेत्र में इंटरमीडिएट की छात्रा ने खुदकुशी कर ली. परिजनों ने सुसाइड का कारण हॉस्टल संचालक द्वारा परेशान करना बताया. बताया कि इससे वह मानसिक रूप से परेशान रहती थी.
– 13 जून सुल्तानगंज थाना क्षेत्र में 10 वीं के छात्र ने खुदखुशी कर ली, वजह मानसिक तनाव बताया गया.– 8 जून को मोजाहिदपुर थाना क्षेत्र में 18 वर्षीय युवक ने मां के घर से बाहर निकलते ही खुदखुशी कर ली. यह भी मानसिक तनाव से जूझ रहा था.
क्या कहते हैं मनोचिकित्सक
टीएनबी कॉलेज मनोविज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. राजेश कुमार तिवारी (मनोचिकित्सक) का कहना है कि युवाओं में तनाव से लड़ने की क्षमता कम हो रही है. वे बात नहीं कर पाते, जिससे छोटे मुद्दे भी बड़ा रूप ले लेता है. सोशल मीडिया का दुष्प्रभाव, असफल प्रेम संबंध और करियर को लेकर असमंजस भी आत्मघाती कदम के लिए उकसाता है. बचाव समाज और प्रशासन को मिलकर प्रयास करना होगा. शिक्षा संस्थानों में नियमित मानसिक काउंसलिंग और परिवारों में संवाद की संस्कृति को बढ़ावा देने की जरूरत है. युवाओं में सहनशीलता की कमी, संवादहीनता और सोशल मीडिया का अत्यधिक प्रभाव भी इसकी एक बड़ी वजह बन रही है. ज्यादातर दूसरों से तुलनात्मक बातों पर बच्चों में इंफ्रेरिटी कॉम्प्लेक्स होता और वे फ्रस्ट्रेशन का शिकार होते हैं. किसी से प्रेम हो और अगर प्रेम संबंध में टूट हो जाए तो इन कारणों से भी मानसिक तनाव बढ़ने की संभावना है. विशेषज्ञ इन्हें अपने भाषा में कार्टिसोल हार्मोन बढ़ने का कारण बताते हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है