छह जुलाई को हरिशयनी एकादशी है. इसके साथ ही चतुर्मास शुरू होगा और हिंदू धर्मावलंबियों के धर्म-कर्म में गति आयेगी. इसके साथ ही देवशयनी एकादशी के बाद चार माह तक मांगलिक कार्य प्रतिबंधित रहेंगे. वहीं दुर्गापूजा से पहले तक बाजार भी मंदा रहेगा. गुरु व शुक्र अस्त होने के कारण शादी-विवाह का योग नहीं बनेगा. पंडित आनंद मिश्रा ने बताया कि पंचांग के अनुसार देवशयनी एकादशी पांच जुलाई को रात्रि 6:28 बजे शुरू होगी. यह तिथि छह जुलाई को रात 8:22 बजे तक रहेगी. व्रत का पारण सात जुलाई को सुबह 5:29 बजे से 8:16 बजे के बीच किया जायेगा. द्वादशी तिथि सात जुलाई को रात 11:10 बजे समाप्त होगी. व्रत का पारण द्वादशी समाप्त होने से पहले करना जरूरी है. देवशयनी एकादशी पर इस बार तीन शुभ योग बन रहे हैं. साध्य योग रात 9:07 बजे तक रहेगा. इसके बाद शुभ योग और त्रिपुष्कर योग का संयोग बनेगा. साथ ही शुभ योग और तैतिल करण का भी निर्माण होगा. विशाखा नक्षत्र सुबह 10:54 बजे तक रहेगा. सावन के बाजार से होगी भरपाई एक ओर जहां मांगलिक कार्य बंद हो जायेंगे तो बाजार भी मंदा पड़ जायेगा. इस दौरान सावन के आगमन पर स्थानीय बाजार के कारोबारियों की उम्मीद रहेगी. इसमें सावन से संबंधित कपड़े, पूजन सामग्री एवं भागलपुर के थोक बाजार से क्षेत्रीय बाजार में सावन संबंधित सामान की खरीदारी होगी. इसमें फल, कपड़े व पूजन सामग्री आदि शामिल हैं. हरिशयनी एकादशी के बाद भगवान विष्णु करते हैं शयन पंडित समीर मिश्रा ने बताया कि शुभ लग्न की तिथि में ही वैवाहिक व अन्य शुभ कार्य कर सकते हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु चार महीने क्षीर-सागर में शयन करते हैं. इस बीच मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं. वैवाहिक कार्य 22 नवंबर से और अन्य मांगलिक कार्य तीन नवंबर से चातुर्मास का समापन कार्तिक शुक्ल एकादशी को देवउठनी एकादशी पर होगा. उसी दिन भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं. इसके बाद शुभ कार्यों की शुरुआत होती है. देवोत्थान एकादशी एक नवंबर को जब भगवान विष्णु जगेंगे, तो होगा लेकिन कालशुद्धि न मिलने के कारण वैवाहिक लग्न 21 दिन बाद 22 नवंबर से आरंभ होंगे. हालांकि जीर्णादि गृहारंभ आदि कार्य तीन नवंबर से आरंभ हो जायेंगे. चार माह तक सृष्टि का संचालन भगवान महादेव के हाथों पंडित अंजनी शर्मा ने हिंदू धर्म में चातुर्मास का विशेष महत्व का बताते हुए कहा कि इस चार माह में सृष्टि का संचालन महादेव स्वयं करते हैं. ईश्वर की कृपा से वर्षा काल होने से यह महीना अन्नदाता किसानों को भी प्रिय होता है. भगवान शिव की साक्षात कृपा के लिए भक्तगण मनोयोग से उनकी पूजा अर्चना करते हैं. शिव भी अपने भक्तों पर नजर रखते हैं और उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं, उन्हें अभयदान देते हैं. इस चार माह के बीतने के बाद जब भगवान विष्णु योगनिद्रा से बाहर आते हैं, तब शिव फिर से समाधि में जले जाते हैं. इस प्रकार भगवान विष्णु के चतुर्मास का शयन एवं जागरण सृष्टि के नव सृजन का संकेत लेकर आता है और सृष्टि लयबद्ध तरीके से चलती रहती है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है