गंगा मुक्ति आंदोलन, जल श्रमिक संघ और बिहार प्रदेश मत्स्यजीवी जल श्रमिक संघ की ओर से शनिवार को कचहरी परिसर स्थित पेंशनर समाज हाॅल में आजीविका बचाओ सम्मेलन का आयोजन किया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ योगेंद्र तथा संचालन जल श्रमिक संघ के प्रांतीय अध्यक्ष योगेंद्र सहनी ने किया. सम्मेलन की भूमिका व गंगा मुक्ति की भूमिका वरिष्ठ समाजकर्मी और गंगा मुक्ति आंदोलन के समन्वयक रामशरण ने कहा कि हमारी जमात इस बात की लड़ाई लड़ता रहा है कि प्राकृतिक संसाधनों पर समुदाय का हक हो. जल, जंगल व जमीन जनता के अधीन हो के नारे के साथ हमने गंगा पर बादशाह अकबर के काल से चल रही जमींदारी व पानीदारी को खत्म कराने में सफलता हासिल की. आंदोलन के कारण गंगा ही नहीं, बिहार की तमाम नदियां पारंपरिक मछुआरों के लिए कर मुक्त की गयी. गंगा मुक्ति आंदोलन के वरिष्ठ संगठक उदय ने कहा कि वर्तमान सरकार की नीतियां और काम कॉरपोरेटपरस्त और सामंतवादी है. यही कारण है कि वर्तमान सत्ता और प्रशासन पारंपरिक मछुआरों की आजीविका छीनकर मध्यवर्ग को खुश करने और विदेशी सैलानियों को आकर्षित करने की जुगत में लगी है और डॉल्फिन डॉल्फिन चिल्लाती है. 11 दिसंबर 1991 को तत्कालीन बिहार सरकार ने यह जानते हुए कि 22 अगस्त 1990 को ही गंगा में सुलतानगंज से कहलगांव तक डॉल्फिन सेंक्चुरी की घोषणा हो चुकी है. पारंपरिक मछुआरों को नदियों में निःशुल्क शिकारमाही का अधिकार दिया था. गंगा मुक्ति आंदोलन के संयोजक सुनील सहनी ने कहा कि सरकार की मंशा के अनुरूप ही वन विभाग निःशुल्क शिकारमाही के अधिकार को शिथिल कर मछुआरों को मछली पकड़ने से रोक रही है. डॉ योगेंद्र ने कहा कि गंगा के अतिरिक्त गंडक, घाघरा, महानंदा और कोशी आदि नदियों में भी डॉल्फिन बड़ी संख्या में है. गौतम मल्लाह ने कहा कि वर्तमान सरकार की नीति ही है कि जमीन वालों को मत्स्य पालन के लिए प्रोत्साहित कर रही है और पारंपरिक मछुआरों से उसका अधिकार छीन रही है. इस दाैरान कहा कि एसआइआर का तो विरोध करते ही हैं, साथ ही लोगों का नाम शामिल करने के लिए हम अभियान चलाएंगे. कार्यक्रम में कहलगांव, सुलतानगंज, नवगछिया, नाथनगर, सबौर और भागलपुर के मछुओं ने भाग लिया. कार्यक्रम में मालती देवी, सुनील सहनी, मनोज कुमार सहनी, अनिरुद्ध, रोहित कुमार, नरेश महलदार, बिरजू सहनी आदि का योगदान रहा.
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