Darbhanga News: दरभंगा. ””””नागार्जुन चेयर”””” के तत्वावधान में लनामिवि के पीजी हिंदी एवं उर्दू विभाग की ओर से “कबीर और नागार्जुन के साहित्य में लोक- दर्शन ” विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया. हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. उमेश कुमार की अध्यक्षता में आयोजित संगोष्ठी में बीज वक्ता सह पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. चंद्रभानु प्रसाद सिंह ने कहा कि कबीर एवं नागार्जुन के साहित्य में लोक दर्शन का अर्थ लोक जीवन से है. बिहार के महत्वपूर्ण आंदोलनों में नागार्जुन की अहम भूमिका रही है. उन्होंने युग निर्माण और किसान मजदूर के हक में अपनी लेखनी को आधार बनाया. सामंती व्यवस्था, स्वार्थ जनित राजनीति के प्रति उन्होंने अपनी आवाज बुलंद की. महिलाओं के जीवन संघर्ष और पीड़ा काे यथार्थ रूप से अपनी रचनाओं में व्यक्त किया. संकायाध्यक्ष प्रो पुष्पम नारायण ने कहा कि कबीर और नागार्जुन के साहित्य में विद्यमान उनके आंतरिक मूल्यों को गहराई से समझने की जरूरत है.
जनजीवन को अपनी रचनाओं में उतारने का किया प्रयास- डॉ सत्यदेव
कार्यक्रम से ऑन लाइन जुड़े केंद्रीय विश्वविद्यालय, असम के प्राध्यापक डॉ सत्यदेव प्रसाद ने कहा कि कबीर और नागार्जुन की रचनाओं में आत्मज्ञान का प्रमुख स्थान है. आत्म चेतस होना आज हमें कई समस्याओं से सुरक्षित रखने में सक्षम है. दोनों साहित्यकारों ने जनजीवन को अपनी रचनाओं में उतारने का प्रयास किया.क्रांति के अग्रदूत थे कबीर एवं नागार्जुन – प्रो. उमेश
प्रो. उमेश कुमार ने कहा कि कबीर और नागार्जुन के विचारों के केन्द्र में सामाजिक समरसता, लोक जीवन की व्यापकता, नैतिकता, सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण है. कबीर और नागार्जुन वैचारिक क्रांति के अग्रदूत थे. उनके साहित्य में लोक- जीवन सांस्कृतिक मूल्यों के साथ उपस्थित है. डॉ सुरेन्द्र प्रसाद सुमन ने कहा कि भारतवर्ष में सांस्कृतिक जनवाद का परचम कबीर ने लहराया. आधुनिक काल में नागार्जुन ने उन्हीं परंपराओं को आगे बढ़ाते हुए स्वार्थ लोलुप राजनीति और सत्ता का खुलकर विरोध किया. मधुप्रभा ने कहा कि नागार्जुन ने नारी को लोक दृष्टि से देखा. डॉ रामसेक पंडित ने कहा कि नागार्जुन ने सामंतवादी व्यवस्था, रुढ़िवादी परंपरा एवं सामाजिक विषमता पर तीव्र प्रहार किया. डॉ शंभु पासवान ने कबीर के बीजक को मध्यकालीन भारत का संविधान बताया. डॉ संजय कुमार ने भी विचार रखा. दूसरे – सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो. विजय कुमार ने कहा कि मध्यकाल में जिस ज्ञान का विस्फोट हुआ, उसके प्रणेता कबीर थे. नागार्जुन ने इस ज्ञान को आगे तक फैलाया. डॉ आनंद प्रसाद गुप्ता ने कहा कि लोक- जीवन में रचे- बसे होने के कारण कबीर और नागार्जुन प्रेरक रचनाकार रहे हैं. डॉ अनिरुद्ध सिंह ने कहा कि कबीर का दर्शन मिश्रित दर्शन है, जिसमें अहिंसावाद, सूफियों के भावनात्मक रहस्य आदि मिलता है. संचालन सुभद्रा कुमारी, धन्यवाद ज्ञापन कंचन रजक, स्वागत और विषय प्रवेश उर्दू विभागाध्यक्ष प्रो. गुलाम सरवर ने किया.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है