हसनगंज प्रखंड क्षेत्रों में बांस की खेती में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. बसों को अन्य पेड़ों की श्रेणी से अलग मान्यता प्राप्त है. जबकि इसकी कटाई व बेचने की प्रशासनिक हस्तक्षेप भी समाप्त कर दिया गया है. ग्रामीण क्षेत्रों के लोग धान, मखाना, मक्का, गेहू, सरसों आदि के साथ-साथ बांस की खेती में भी दिलचस्पी ले रहे हैं.किसान अपना सुंदर भविष्य देख रहे हैं. बांस की खेती करने वाले ग्रामीण किसान बांस का इस्तेमाल अपने खेतों की चहारदिवारी, घर छप्पर, हाथ पंखा, बांस की टोकरी, सूप आदि बनाने में तो करते ही है. बिक्री से अच्छी खासी आमदनी भी प्राप्त होती है. वैशाख व ज्येष्ट अर्थात अपैल- मई के माह में बांस के कलम को दो फीट की गोलाई लेते हुए डेढ़ फीट गढ्डा खोदने के बाद लगाया जाता है. एक गडढ़े से दूसरे की दूरी छह से सात फीट की होती है. बांस लगाने के पांच वर्ष के बाद से यह उपज देने लगता है. जानकारी के अनुसार प्रति बांस की कीमत वर्तमान में ढेर सौ रुपये से ढाई सौ रुपया तक है. बांस का उपयोग लोग घरेलू कार्य में तो करते हैं, इसके साथ इसका उपयोग मुख्य रूप से, चारपाई, मकान, पुल बांधने, शादी या किसी समारोह में पंडाल बनाने खेती के औजार, सूत काटने, बांसुरी बनाने, तीर धनुष बनाने आदि में होता है. बांस की खेती करने वाले किसान प्रमोद यादव, बिनोद यादव, यासीन मियां, अब्दुल वाहिद आदि कहते हैं कि बांस की लगभग पांच प्रजातियां होती है. मोकला, करिया आदि इस इलाके में उपलब्ध है. बांस कम लागत में ज्यादा मुनाफा प्रदान करती है. बांस की खेती को आप बेहतर व बड़े पैमाने पर करने के लिए सरकार से इस ओर अपना ध्यान आकृष्ट कराने का आग्रह भी किया गया. नए सिरे से बांस की खेती के लिए अनुदान मिलना चाहिए. बांस का पौधा लगाने आदि में विभाग के सहायता का प्रावधान है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है