संग्रामपुर. नगर पंचायत संग्रामपुर के लक्ष्मीपुर गांव स्थित चैती दुर्गा मंदिर की महिमा अपरंपार हैं. प्रखंड मुख्यालय से लगभग दो किलोमीटर पर स्थित वैष्णवी चैती दुर्गा मंदिर लक्ष्मीपुर करीब एक सौ साल से अधिक पुरानी हैं. स्थापना कल से ही मंदिर से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं आज भी उदाहरण स्वरूप देखने को मिलता है. सच्चे मन से जो भी श्रद्धालु वैष्णवी चैती दुर्गा मंदिर में आकर मन्नत मांगते हैं. उनकी मुरादें अवश्य पूर्ण होती है. इस मंदिर की खास बात यह है की मंदिर में स्थापित प्रतिमा का विसर्जन ग्रामीणों के द्वारा कंधों पर की जाती है. मंदिर से लगभग 2 किलोमीटर लक्ष्मीपुर के बहियार में स्थित पोखर में माता की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है. विसर्जन से पूर्व मंदिर परिसर में माता के प्रतिमा को निकालकर ग्रामीण महिलाओं द्वारा विदाई दी जाती है. आश्चर्य यह है कि विदाई के पूर्व प्रत्येक वर्ष माता के प्रतिमा के भव्य रूप से आंसू निकलता है. जिसे देख गांव के समस्त लोगों के आंखों से आंसू छलकने लगता है. चैती नवरात्र शुरू होते ही लक्ष्मीपुर गांव के सभी घरों में लहसुन प्याज सहित सभी प्रकार के तामसिक भोजन बंद हो जाता है. गांव के 95 वर्षीय बुजुर्ग भूपेंद्र नारायण सिंह मंदिर से जुड़े पुरानी बात को याद करके कहते हैं कि वह दृश्य आज भी जब याद आती हैं, तो सहमा देती हैं. वर्ष 1966 में किसी कारण प्रतिमा का विसर्जन के लिए ट्रैक्टर का प्रयोग किया गया. प्रतिमा को ट्रैक्टर पर रखते ही जैसे मानो आसमान टूट पड़ा तेज गर्जना के साथ चारों ओर अंधेरा छा गया. इसी बीच तेज हवा के झोंकों के साथ आसमान से ओले गिरने लगे. ओलावृष्टि इतनी तेज थी की प्रतिमा क्षतिग्रस्त हो गया. जबकि इस दौरान आसपास के गांव में ओलावृष्टि नहीं हुई. गांव के बुजुर्ग भोला यादव, नवीन सिंह, सचिदानंद सिंह आदि ने बताया कि ग्रामीणों में हुए किसी विवाद के कारण एक वर्ष प्रतिमा स्थापित नहीं की गई. उस दौरान गांव में हैजा बीमारी फैल गयी थी. जिसके बाद प्रतिमा बनाने वाले कारीगर को सूचित कर प्रतिमा बनाने का कार्य शुरू किया गया, तब जाकर नवरात्रि के दौरान बीमारी का दौर समाप्त हुआ.
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