गंभीर स्थिति में आने वाले मरीजों को कर दिया जाता है रेफर
प्राइवेट अस्पताल संचालकों को हो रहा फायदा
मुंगेर. मुंगेर सदर अस्पताल जरूरतमंदों को आपातकालीन स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने में पूरी तरह से विफल साबित हो रहा है. पिछले एक सप्ताह के दौरान चाहे वह मुफस्सिल थाना के घायल एएसआइ संतोष कुमार सिंह के इलाज का मामला हो या फिर शंकरपुर मिल्की गांव में गोली से घायल युवक के इलाज की बात हो. आपात स्थिति में स्वास्थ्य सेवा के लिए जरूरतमंद भागे-भागे सदर अस्पताल तो पहुंचते हैं, लेकिन यहां भी उनका इलाज नहीं हो पाता और तुरंत ही ऐसे मामलों में जीवन व मौत से जूझ रहे घायल को रेफर कर दिया जाता है. इसके बाद एक ही सहारा बचता है प्राइवेट अस्पताल.
मुंगेर मुख्यालय में स्थित सदर अस्पताल की स्वास्थ्य व्यवस्था पर सरकार प्रतिमाह एक करोड़ से अधिक की राशि खर्च करती है, लेकिन आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में यह लोगों के लिए उपयोगी साबित नहीं हो पा रहा. इमरजेंसी वार्ड सिर्फ व सिर्फ प्राथमिक उपचार का केंद्र बन गया है. जबकि गंभीर रूप से घायल रोगियों के इलाज की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है. न ही आइसीयू सुव्यवस्थित है और न ही वार्ड में इलाज की व्यवस्था है. सर्जरी मामले में तो यह अस्पताल अपनी व्यवस्था पर आंसू बहा रहा है, क्योंकि शायद यह बिहार का पहला सदर अस्पताल हो, जहां शल्य चिकित्सक ही नहीं हैं. इससे किसी भी प्रकार के ऑपरेशन की सुविधा यहां जरूरतमंद रोगियों को नहीं मिल पा रही है.मॉडल अस्पताल का ट्रामा सेंटर नहीं हो पाया है आरंभ
सदर अस्पताल में 32 करोड़ की लागत से बने मॉडल अस्पताल में घटना व दुर्घटना में घायल मरीजों के लिए अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस ट्रामा सेंटर बनाया गया है, लेकिन मॉडल अस्पताल हैंडओवर नहीं हो पाने के कारण अबतक यहां बने ट्रामा सेंटर का भी मरीजों को लाभ नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में बदहाल आपातकालीन वार्ड में आने वाले मरीजों को रेफर ही होना पड़ रहा है. इसके अतिरिक्त मॉडल अस्पताल में अति गंभीर मरीजों के लिए 12 बेड का इमरजेंसी सह आइसीयू वार्ड भी बनाया गया है. लेकिन हैंडओवर के पेच में फंसे मॉडल अस्पताल में इस 12 बेड वाले इमरजेंसी सह आइसीयू वार्ड की सुविधा भी अबतक मरीजों को नहीं मिल पा रही है. इसके कारण सदर अस्पताल में आने वाले अति गंभीर मरीज अबतक बिना वेंटिलेटर वाले आइसीयू में इलाज करा रहे हैं.सदर अस्पताल से रोगी पहुंच रहे निजी अस्पताल
होली के दौरान 14 मार्च की शाम मुफस्सिल थाने में तैनात डायल-112 टीम के एएसआइ संतोष कुमार सिंह पर आपराधिक तत्वों ने जानलेवा हमला कर गंभीर रूप से घायल कर दिया था. उन्हें घायल अवस्था में सदर अस्पताल लाया गया, लेकिन प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें रेफर कर दिया गया. बाद में पुलिस अधिकारियों ने उन्हें समीप के एक निजी अस्पताल में ले गये और वहां से पटना रेफर कर दिया गया. पटना में उनकी मौत हो गयी. वहीं 14 मार्च को ही शंकरपुर में हुई गोलीबारी में दो युवक घायल हो गये थे. इसमें एक की मौत हो गयी. जबकि दूसरे को भी अस्पताल से रेफर ही कर दिया गया. जमालपुर के रामनगर मोर्चा में 15 मार्च की रात हुई गोलीबारी में घायल युवक को सरकारी अस्पताल की जगह निजी नर्सिंग होम ले जाया गया, जहां उसकी मौत हो गयी.मुंगेर सदर अस्पताल में मिल रही पीएचसी जैसी सुविधा, उठ रहे सवाल
मुंगेर. सदर अस्पताल में इमरजेंसी सेवा उपलब्ध है, लेकिन सुविधाओं के अभाव में यहां केवल सर्दी, खांसी और बुखार से पीड़ित मरीजों का ही इलाज हो रहा है. जबकि हथियारों की मंडी कहे जाने वाले मुंगेर में गन शॉट, मारपीट या अत्यधिक गंभीर मामलों में मरीजों को रेफर ही कर दिया जाता है. इस स्थिति का सबसे अधिक फायदा निजी नर्सिंग होम संचालकों को हो रहा है. हालांकि कई बार इन निजी नर्सिंग होम से भी आखिरी समय में मरीजों को रेफर ही कर दिया जाता है. कुल मिलाकर कहा जाये तो सदर अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में केवल प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों जैसी सुविधाएं ही मरीजों को मिल रही हैं.32 करोड़ों की लागत से बना मॉडल अस्पताल पड़ा है बेकार
मुंगेर. आम लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा का लाभ उपलब्ध कराने के लिए मुंगेर में 32 करोड़ की लगात से 100 बेड का मॉडल सदर अस्पताल बनाया गया. इसका उद्घाटन 5 फरवरी 2025 को प्रगति यात्रा पर पहुंचे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया था, लेकिन अबतक मॉडल अस्पताल भवन में सदर अस्पताल शिफ्ट नहीं हो सका है. स्वास्थ्य विभाग और निर्माण एजेंसी बीएमआइसीएल अब भी मुंगेर के लोगों के साथ मॉडल अस्पताल को लेकर हैंडओवर का खेल खेलने में लगी है. जबकि मॉडल अस्पताल के सामने प्रतिदिन मरीज निजी नर्सिंग होम में रेफर हो रहे हैं.
सदर अस्पताल में एक भी शल्य चिकित्सक नहीं है, इसलिए घायल का ऑपरेशन संबंधित कार्य यहां नहीं किया जा सकता है. इसके साथ ही बीएमआइसीएल द्वारा अब तक मॉडल अस्पताल को हैंडओवर नहीं किया गया है. इससे अन्य सुविधा भी रोगियों को उपलब्ध नहीं हो पा रही है.डाॅ विनोद कुमार सिन्हा, सिविल सर्जनB
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