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माता पार्वती ने कठोर तपस्या कर भगवान शिव को वर के रूप में प्राप्त किया : विष्णुदत्त महाराज

भगवान शिव एक तपस्वी थे और उनके परिवार में कोई सदस्य नहीं था.

बरियारपुर प्रखंड के खड़िया गांव में आयोजित 11 दिवसीय रुद्र महायज्ञ के आखिरी दिन मंगलवार को यज्ञशाला में सैकड़ों श्रद्धालुओं ने मंडप की परिक्रमा की और देर शाम दस हजार दीपक जलाकर यज्ञशाला को रोशनी से जगमग किया गया. मौके पर कथावाचक विष्णु दत्त जी महाराज ने शिव-पार्वती विवाह प्रसंग को सुनाया. महाराज ने कहा कि भगवान शिव को अपना वर बनाने के लिए माता पार्वती ने बहुत कठोर तपस्या शुरू कर दी. उनकी घोर तपस्या एवं जिद को देख भोलेनाथ मान गए और उनसे विवाह करने के लिए राजी हुए. शिव को लगा कि पार्वती उन्हीं की तरह हठी है, इसलिए ये जोड़ी अच्छी बनेगी. अब शादी की तैयारी जोरों पर शुरू हो गई. लेकिन समस्या यह थी कि भगवान शिव एक तपस्वी थे और उनके परिवार में कोई सदस्य नहीं था. लेकिन मान्यता यह थी कि एक वर को अपने परिवार के साथ जाकर वधू का हाथ मांगना पड़ता है. अब ऐसी परिस्थिति में भगवान शिव ने डाकिनियों और चुड़ैलों ने उनको भस्म से सजा दिया और हड्डियों की माला पहना दी. इस अनोखी बारात पार्वती के द्वार पहुंची तो भगवान शिव के इस विचित्र रूप को देख पार्वती की मां स्वीकार नहीं कर पाई और उन्होंने अपनी बेटी का हाथ देने से मना कर दिया. स्थिति बिगड़ते देख पार्वती ने शिव से प्राथना की वो उनके रीति रिवाजों के मुताबिक तैयार होकर आएं. शिव ने उनकी प्राथना स्वीकार की और खूबसूरत रूप से तैयार होकर आए. तब पार्वती की मां ने उन्हें स्वीकार कर लिया और ब्रह्मा जी की उपस्थिति में विवाह समारोह शुरू हुआ. माता पार्वती और भोलेबाबा का विवाह संपन्न हुआ.

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