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मेसकौर में कई साल बाद समय से धान की रोपनी शुरू

हर साल बढ़ रही मजदूरी, फिर भी नहीं मिल रहे खेतीहर मजदूर

हर साल बढ़ रही मजदूरी, फिर भी नहीं मिल रहे खेतीहर मजदूर

प्रतिनिधि,

मेसकौर.

कई सालों के बाद मेसकौर प्रखंड के किसानों के चेहरे पर रौनक लौटी है. मेसकौर प्रखंड के किसानों के खेतों में पर्याप्त पानी है और मौसम सदाबहार बना है, लेकिन सबसे बड़ी समस्या मजदूरी को लेकर हो रही है. ईंट-भट्टे से मजदूरों के वापस आ जाने के बाद भी धान की रोपनी के लिए पर्याप्त मजदूर हीं नहीं मिल रहे हैं. अब नवादा नेपाल बॉर्डर क्षेत्र से मजदूर मंगाये जा रहे हैं. करीब पांच सौ से अधिक मजदूर मेसकौर प्रखंड पहुंचे हैं. इसके चलते मजदूरी बढ़ गयी है. सिर्फ एक बिगहा धान रोपाई की कीमत 2000 रुपये या इससे अधिक रुपये लग रहा है. इसके अलावा जुताई, खाद व बीज आदि मिलाकर धान रोपने में लगने वाले कुल खर्च की बात करें, तो यह प्रति बीघा छह हजार रुपये तक पहुंच रहा है.

गेहूं काटने में भी हुई थी दिक्कत

बता दें कि पलायन के कारण किसानों को गेहूं की कटाई के लिए मजदूरों की काफी कमी का सामना करना पड़ा था. अब धान की रोपनी के लिए भी उन्हें मजदूर नहीं मिल रहे हैं. इस बीच मजदूर नहीं पहुंचने की वजह से किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें खींचने लगी हैं. दूसरी ओर स्थानीय मजदूरों ने रोपनी का रेट भी बढ़ा दिया है. इस समस्या के समाधान करने में किसानों को बहुत दिक्कत हो रही है.

हर बार दाम बढ़ा रहे हैं मजदूर

मुन्ना राजवंशी, जगदीश चौहान, उमेश चौहान, सुरेश महतो, विपिन कुमार, मुकेश सिंह, भोला सिंह, पप्पू सिंह, रघु प्रसाद, रंजीत यादव, गौतम सिंह, सतीश राम, विजय प्रसाद, विपिन सिंह आदि किसानों का कहना है कि धान लगाने के लिए किसानों को मजदूरों के अलावा अन्य कई परेशानियों से जूझना पड़ रहा है. मजदूर हर बार दाम बढ़ा रहे हैं और सरकार धान का मूल्य बढ़ाने में कंजूसी कर रही है. किसानों को फसलों में लाभ कम होने लगा है. पिछले साल खेतों में काम करने वाले मजदूरों ने जो मजदूरी ली थी, उसे इस बार 28 % बढ़ा दिया है. मनमानी मजदूरी के बाद भी मजदूर नहीं मिल रहे.

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