Bihar Road Accident: पटना. बिहार में जितनी अच्छी सड़कें बन रही हैं, उतनी ही बुरे हादसों के आंकड़े सामने आ रहे हैं. बिहार में कोई ऐसा जिला नहीं है, जहां सड़क हादसों में लोगों की जान न जा रही हो. बिहार की सड़कों पर हर दिन मौत की खबरें आती है. ये आंकड़े चौंकाते नहीं, दहला देते हैं. बिहार में हर रोज औसतन 27 सड़क हादसे होते हैं, जिनमें 21 मौतें दर्ज होती हैं. पिछले आठ वर्षों में लगभग 80 हजार सड़क दुर्घटनाएं और 60 हजार से अधिक मौतें यह साबित करती हैं कि राज्य की सड़कों पर अब वाहन नहीं, सिर्फ लाशें दौड़ रही हैं.
नेशनल हाईवे बनी ‘नेशनल हेललाइन’
बिहार में सबसे खतरनाक हैं नेशनल हाईवे पर चलना. यहां कुल दुर्घटनाओं में लगभग 45 फीसदी हादसे हो रहे हैं. एनएच 31, एनएच 28, एनएच 30 और एनएच 57, ये राजमार्ग अब अपनी समतलता के लिए नहीं, हादसों के प्रतीक के लिए रूप चर्चा में हैं. रजौली से किशनगंज तक, गोपालगंज से पटना तक, कोई ऐसी सड़क नहीं है जहां हादसे न हो रहे हों, हर रोज कहीं न कहीं ट्रकों और बाइक के बीच रौंदी जाती ज़िंदगियां. बिहार में नेशनल हाईवे अब ‘नेशनल हेललाइन’ बन चुकी है.
2024 में और बढ़ा कहर
सड़क हादसों के आँकड़े हर साल भयानक होते जा रहे हैं. 2024 में औसतन 32 हादसे और 25 मौतें प्रति दिन, यानी हर घंटे एक जान जा रही है. सड़कें अब विकास की नहीं, विनाश की रेखाएं बन गई हैं. सरकार ‘आई-आरएडी’ और ‘ई-डीएआर’ जैसे पोर्टल से पीड़ितों को न्याय दिलाने की बात करती है, लेकिन धरातल पर मौतें बढ़ रही हैं. अब तक 39,162 हादसे दर्ज और 18,000 मामलों को डिजिटल रूप से ट्रैक किया गया, लेकिन यह तकनीकी व्यवस्था मुआवज़ा की उम्मीद तो देती है, ज़िंदगी नहीं लौटा सकती.
इन ज़िले की हालत बेहद खराब
हादसों के मामले में पटना, पूर्णिया, मधेपुरा, किशनगंज, सहरसा, अररिया, रोहतास और गया जैसे जिले मौत के हब बन चुके हैं. इन ज़िलों में हर सड़क पर मौत घात लगाए बैठी है. वहीं दुर्घटनाओं के मूल में दोषपूर्ण सड़क संरचना, बिना संकेतक चौराहे और पैदल यात्रियों की अनदेखी जैसे गंभीर कारण हैं. सवाल यह नहीं कि सड़कें खतरनाक क्यों हैं, सवाल यह है कि इतनी मौतों के बाद भी तंत्र सुन्न क्यों है. बिहार की सड़कों पर अब वाहन नहीं दौड़ते, लापरवाही और प्रशासनिक उदासीनता सवार होती है और हर रात के बाद एक नई सुबह नहीं, एक और जनाज़ा निकलता है. ये हम नहीं आंकड़े कहते हैं.
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