CM Nitish, कृष्ण कुमार, पटना: चुनावों में पहले भी महिलाएं अलग अलग राजनीतिक दलों को अपनी पसंदगी के आधार पर वोट देती थीं. ताजा मामला बिहार के संदर्भ में है. यहां महिलाओं को नीतीश कुमार ने अपने एक सशक्त वोटर समूह के तौर पर खड़ा किया है. 2005 से 2025 की अवधि के दौरान महिलाओं के लिए किये गये काम की निरंतरता इसकी बानगी हैं.
इससे महिलाएं चहारदीवारी से बाहर निकलकर समाज और राज्य के विकास सीधे तौर पर अपना महत्वपूर्ण योगदान देने लगी हैं. उनको जो आर्थिक आजादी और उन्होंने जिस तरह नये परिवेश में कामकाज की जिम्मेदारी संभाली उससे परिवार, समाज और राज्य में महिलाओं के प्रति सोच और दृष्टिकोण बदल गया. हम कह सकते हैं कि समाज का कायाकल्प हो गया.
कब हुई शुरुआत
इसकी शुरुआत 24 नवंबर, 2005 को नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बाद हुई. इसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महिला सशक्तिकरण की दिशा में काम शुरू किया. पहली बार उन्होंने वर्ष 2006 में पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था शुरू की. इससे खासा असर हुआ और पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़चढ़ कर दिखने लगी.
चहारदीवारी के अंदर रहने वाली महिलाएं बड़ी संख्या में मुखिया बनीं और गांव का कमान संभालकर महिलाओं की बेहतरी के लिए कई काम शुरू हुये. योजनाएं धरातल तक पहुंचती दिखीं.
नगर निकायों में महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण
इसके साथ ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महिला सशक्तिकरण की दिशा में अगला महत्वपूर्ण कदम उठाते हुये वर्ष 2007 में नगर निकायों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की शुरुआत कर दी. इसके भी बेहतर परिणाम निकलकर सामने आये. नगर निकायों में भी बड़ी संख्या में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी. मुख्यमंत्री के इस निर्णय का बेहतर असर अब स्पष्ट तौर पर दिखने लगा है. महिलाएं नगर निकायों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं.
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पुलिस और सरकारी नौकरी में 35 फीसदी आरक्षण
पंचायती राज संस्थाओं और नगर निकायों में आरक्षण के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्रता देने के लिए पुलिस की नौकरी में वर्ष 2013 से 35 प्रतिशत आरक्षण की शुरुआत की. इसका असर यह हुआ है कि अब बिहार पुलिस में महिलाओं की संख्या 30 हजार से अधिक है. यह संख्या महिला पुलिस के मामले में देश में सबसे अधिक है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वर्ष 2016 से महिलाओं को सरकारी नौकरियों में भी 35 प्रतिशत आरक्षण की शुरुआत कर दी. महिलाओं को पुलिस और सरकारी नौकरियों में आरक्षण का प्रावधान कर उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता देना मुख्यमंत्री का महत्वपूर्ण विकासवादी कदम माना जाता है. महिलाएं अब आर्थिक रूप से सक्षम होकर घर, परिवार और समाज निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं.
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जीविका समूहों का गठन
24 नवंबर, 2005 को मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार ने वर्ष 2006 में विश्व बैंक से कर्ज लेकर राज्य में स्वयं सहायता समूह का गठन किया और उसे ‘जीविका’ नाम दिया. इससे जुड़ने वाली महिलाओं को ‘जीविका दीदी’ कहा गया. अब स्वयं सहायता समूह की संख्या 10 लाख 63 हजार से भी अधिक हो गयी है जिसमें ‘जीविका दीदियों की संख्या एक करोड़ 35 लाख से ज्यादा हो गयी है.
शहरी क्षेत्रों में भी स्वयं सहायता समूह का गठन हो रहा है जिनकी संख्या 36 हजार हो गयी है जिसमें लगभग तीन लाख 80 हजार जीविका दीदियां हैं. स्वयं सहायता समूहों का गठन लगातार जारी है. इसमें बड़ा परिवर्तन यह हुआ है कि जीविका दीदियों को आसानी से ऋण उपलब्ध करवाने के लिए हाल ही में बिहार राज्य जीविका निधि साख सहकारी लिमिटेड बैंक (जीविका बैंक) की शुरुआत की गयी है. इससे स्वरोजगार के लिए 20 हजार रुपये तक का ऋण तीन दिन और 20 हजार से पांच लाख रुपये तक का ऋण दस दिनों में मिल सकेगा.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 21 जून 2025 को जीविका दीदियों को अब सिर्फ सात फीसदी ब्याज पर तीन लाख रुपये से ज्यादा के बैंक ऋण उपलब्ध करवाने की घोषणा की है. स्वयं सहायता समूहों को पहले तीन लाख रुपये से ज्यादा के बैंक ऋण पर 10 प्रतिशत ब्याज देना पड़ता था. ऐसे में जीविका दीदियों के कामकाज को गति मिलेगी.
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पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी
विशेषज्ञों की मानें तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के महिला सशक्तिकरण के बाद महिलाओं का वोट प्रतिशत भी बढ़ा है. चुनाव आयोग के मुताबिक 2010 के विधानसभा चुनाव में 53 प्रतिशत पुरुषों ने मतदान किया था, जबकि महिलाओं के 54.5 प्रतिशत वोट पड़े थे. 2015 के विधानसभा चुनाव में 51.1 प्रतिशत पुरुषों जबकि 60.4 प्रतिशत महिलाओं ने मतदान किया था. इसके साथ ही 2020 के विधानसभा चुनाव में भी वोट डालने में महिलाएं आगे रहीं. इस चुनाव में पुरुषों के 54.6 प्रतिशत तो महिलाओं के 59.7 प्रतिशत वोट पड़े.