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Ramadan: रमजान के पाक महीने में महिलाएं निभा रही हैं दोहरी भूमिका, इबादत और कर्तव्य साथ-साथ

Ramadan: महिलाएं रमजान के पाक महीने के दौरान अपने परिवार, सहयोगियों और सहकर्मियों के सहयोग से अपने कार्यों को सुचारू रूप से मैनेज कर रही हैं. आइए जानते हैं कि शहर की मुस्लिम महिलाएं कैसे रमजान के दौरान अपनी दिनचर्या को संतुलित कर रही हैं.

Ramadan: अभी रमजान का पाक महीना चल रहा है. इस दौरान महिलाओं की जिम्मेदारियां काफी बढ़ गयी हैं. रमजान मुस्लिम महिलाओं के लिए भी आध्यात्मिक शांति और आत्मसंयम का समय होता है. लेकिन यह उनके लिए केवल इबादत का समय नहीं होता, बल्कि घर और काम दोनों की जिम्मेदारी भी उनके कंधों पर होती हैं. रोजा रखते हुए कामकाजी महिलाएं जहां ऑफिस में अपने दायित्व निभा रही हैं, वहीं गृहिणियां घर की देखभाल और पाक महीना की तैयारियों में जुटी रहती हैं.

Khushbu Khatoon
खुशबू खातून

ड्यूटी के दौरान पानी पीकर रोजा तोड़ती हूं: खुशबू खातून

पटना के लहसुना थाना में एसएचओ के पद पर कार्यरत ‘खुशबू खातून’ बचपन से ही रोजा रख रही हैं. उनका चयन 2018 में बिहार पुलिस में हुआ था. वह बताती हैं, सुबह ड्यूटी जाने से पहले सहरी करती हूं और नमाज अदा करती हूं. लेकिन ड्यूटी के दौरान रोजा निभाना आसान नहीं होता. कई बार अचानक कोई घटना हो जाती है, तो वहां फौरन पहुंचना जरूरी होता है. ऐसे में इफ्तार का समय बीत जाता है, तब मजबूरन पानी पीकर रोजा खोलना पड़ता है. खुशबू अपने रोजे को खुदा की इबादत मानते हुए निभाती हैं और साथ ही ड्यूटी को अपना कर्तव्य मानकर पूरी लगन से करती हैं.

Sabina Arzoo
सबीना आरजू

हर दिन पूरे परिवार के साथ रोजा रखती हूं : सबीना आरजू

पटना के सब्जीबाग में रहने वाली ‘सबीना आरजू’ गृहिणी हैं और उनके लिए रमजान के दौरान जिम्मेदारियां कई गुना बढ़ जाती हैं. वह कहती हैं, रोजा रखते हुए इफ्तारी और रात का खाना बनाना, घर की साफ-सफाई करना चुनौतीपूर्ण होता है. सुबह तीन बजे उठकर सहरी की तैयारी करना, फिर फज्र की नमाज पढ़ना और कुरान की तिलावत करना मेरी दिनचर्या में शामिल है. दिन में थोड़ा आराम कर लेती हूं, ताकि शाम को इफ्तार की तैयारी कर सकूं. सबीना मानती हैं कि इबादत और खुदा का नाम लेने से हर मुश्किल आसान हो जाती है.

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नुसरत जहां

अफसर और सहकर्मी सहयोग करते हैं : नुसरत जहां

गांधी मैदान थाना में इंस्पेक्टर के पद पर कार्यरत ‘नुसरत जहां’ कहती हैं, रमजान के दौरान महिलाएं केवल रोजा ही नहीं रखतीं, बल्कि अपनी पारिवारिक और पेशेवर जिम्मेदारियों को भी निभाती हैं. चाहे वह पुलिस की ड्यूटी हो, ऑफिस का काम हो या घर की देखभाल. मैं पिछले 30 वर्षों से रोजा रख रही हूं. रमजान के दौरान मेरी ड्यूटी जारी रहती है, लेकिन मेरे सहयोगी और अफसर काफी मदद करते हैं. कई बार ऐसा भी होता है कि ड्यूटी के कारण इफ्तार का समय बीत जाता है, तब पानी पीकर रोजा खोलना पड़ता है.

रोजा रखते हुए घर व बिजनेस संभालती हूं : शाजिया कैसर

फुलवारी की रहने वाली ‘शाजिया कैसर’ एक सफल महिला उद्यमी हैं. वह बताती हैं, घर और बिजनेस दोनों को संभालने के साथ रमजान की इबादत करना मेरे लिए सबसे अहम होता है. मैंने अपने काम को तीन हिस्सों में बांटा है- सुबह सहरी और नमाज, दोपहर ऑफिस और शाम को इफ्तारी की तैयारी. वह बताती हैं कि इफ्तार के बाद शरीर बहुत थक जाता है, लेकिन खुदा की इबादत में जो सुकून मिलता है, वह इस थकान को दूर कर देता है. यह महीना हमें न केवल आत्मसंयम सिखाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि मेहनत व लगन से किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है.

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Paritosh Shahi
Paritosh Shahi
परितोष शाही डिजिटल माध्यम में पिछले 3 सालों से पत्रकारिता में एक्टिव हैं. करियर की शुरुआत राजस्थान पत्रिका से की. अभी प्रभात खबर डिजिटल के बिहार टीम में काम कर रहे हैं. देश और राज्य की राजनीति, सिनेमा और खेल (क्रिकेट) में रुचि रखते हैं.

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