Indian Wedding: पटना. मिथिला की तरह मगध में भी अब मरजाद की परंपरा खत्म होती जा रही है. शाम को बारात आती है और दर रात खाने के बाद लौट जा रही है. शादी के दिन ही लड़की की विदाई की परंपरा भी अब लोग तेजी से अपना रहे हैं. करीब 150 साल पहले भोजपुर से हुई इस सामाजिक सुधार आंदोलन का असर अब जाकर मगध के समाज पर दिख रहा है. आरा के प्यारे लाल ने 1878 के आसपास शादी का खर्च कम करने के लिए मरजाद खत्म करने की बात कही थी. एक लंबे प्रयास के बाद अब मगध में बारात ठहरने की परंपरा खत्म होती दिख रही है. आज शादी-विवाह के लग्न में दूल्हा पक्ष की तरफ से लोग बड़ी संख्या में बारात बनकर जरूर पहुंच रहे हैं, लेकिन कहीं भी रात में अब ठहरने की परंपरा नहीं दिख रही है.
एक शाम का खाना खाकर लौट रहे बाराती
मगध समेत पूरे दक्षिण बिहार में मरजाद के बिना शादी की परंपरा लोग तेजी से अपना रहे हैं. बारात में शामिल होने के लिए आने वाले लोग खान-पान होने तक इंतजार करते हैं और जैसे ही खाना-पीना हो जाता है, 90 प्रतिशत बराती वापस लौट जाता है. दूल्हा पक्ष के सिर्फ परिवार एवं इक्का-दुक्का लोग ही रात में ठहरते हैं. अधिकतर लोग खाने के बाद रात्रि में ही वाहनों पर सवार होकर गांव लौट जा रहे हैं. यह स्थिति शादी-विवाह के इस लग्न में शहरी क्षेत्र के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में भी देखी जा रही है. कहीं भी रात्रि में ठहरने को लोग तैयार नहीं दिख रहे हैं. हालांकि लड़की पक्ष द्वारा ठहरने की व्यवस्था भी की जा रही है, लेकिन खान-पान हो जाने के बाद बारात की महफिल सुनसान होने लगता है.
मिट गया है मरजाद रखने की परंपरा
शादी-विवाह में मरजाद रहने की परंपरा अब मिटता जा रहा है. मगध में कहीं भी मरजाद रहने की बात अब सामने नहीं आ रही है. चट मंगनी पट विवाह के तर्ज पर ही लोग शादी-विवाह के समारोह में शिरकत कर रहे हैं. विदित हो कि कुछ वर्षों पहले तक मरजाद रखने का परंपरा थी. बहुत सारे लोग थे जो बारात को मरजाद रखते थे. बारात पक्ष के लोग पहले दिन आता था और दूसरा दिन, दिन-रात रहता था. तीसरे दिन सुबह में विदा होता था, लेकिन भाग-दौड़ के इस दौर में मरजाद रखने की परंपरा लगभग मगध के सभी जिले में समाप्ति हो चुकी है. कहीं भी मरजाद रहने की बात सामने अब नहीं आ रही है.
मरजाद की परंपरा लगभग खत्म
जहानाबाद के दिनेश शर्मा कहते हैं कि पहले शादी-विवाह में मरजाद बरात टीका करता था. हमलोग दो दिनों तक बारातियों को लगातार सेवा करते रहते थे. अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ते थे, ताकि बाराती पक्ष के लोग आदर भाव से खुश होकर लौटे. भोजपुर के अमित कुमार कहते हैं कि गांव में अब बारात आती है. हमलोग ठहरने की भी व्यवस्था करते हैं, लेकिन रात में दूल्हा पक्ष के परिवार के सदस्य रुख कर लेते हैं. खाने-पीने के बाद सभी बाराती रात्रि में ही लौट जा रहे हैं. अब तीन दिन रहने का रिवाज लगभग खत्म हो चुका है. शादी अब एक दिन का कार्यक्रम होकर रह गया है.
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