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बिहार यूनिट: बिहार में लीची के बाग हुए बूढ़े, अब झारखंड दे रहा चुनौती

बिहार की शाही लीची अपनी सुगंध और स्वाद के लिए दुनियाभर में मशहूर है, लेकिन समय के साथ यह खेती चुनौतियों से जूझ रही है.

अनुज शर्मा, पटना बिहार की शाही लीची अपनी सुगंध और स्वाद के लिए दुनियाभर में मशहूर है, लेकिन समय के साथ यह खेती चुनौतियों से जूझ रही है. वहीं, झारखंड में युवा किसानों की पहल और वैज्ञानिक खेती की बदौलत लीजी का उत्पादन नयी ऊंचाइयां छू रहा है. बिहार में लीची के अधिकतर बागीचे उम्र दराज हो चुके हैं, जिससे उत्पादकता में गिरावट आ रही है. 2021-22 में राज्य में 36.7 हजार हेक्टेयर में 308.1 हजार टन लीची का उत्पादन हुआ था, जो 2022-23 में बढ़कर 37 हजार हेक्टेयर में 308.8 हजार टन ही पहुंच पाया. राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र, मुजफ्फरपुर के निदेशक डॉ. विकास दास के अनुसार, लीची के पुराने बागीचों में पेड़ों की ऊंचाई बढ़ जाने के कारण छंटाई और कीटनाशक छिड़काव में कठिनाई होती है, जिससे गुणवत्ता और उत्पादन दोनों प्रभावित हो रहे हैं. अधिकांश लीची के बगीचे 20 साल से अधिक पुराने हो चुके हैं. इससे कुछ बागों में उत्पादकता में गिरावट आ रही है. दूसरी ओर, झारखंड में नयी तकनीकों और वैज्ञानिक तरीकों को अपनाकर युवा किसान लीची उत्पादन को नयी दिशा दे रहे हैं. वहां 600 एकड़ से अधिक क्षेत्र में नये बागीचे लगाये गये हैं, और किसानों द्वारा जैविक विधियों तथा अतिरिक्त कार्बन सामग्री का इस्तेमाल किया जा रहा है. दस दिन पहले ही तैयार हो जाती है झारखंड की लीची : बिहार की लीची का आकार और मिठास अद्वितीय है, लेकिन झारखंड में उगायी जा रही लीची अपनी जल्दी पकने की विशेषता के कारण बाजार में तेजी से जगह बना रही है. झारखंड की लीची बिहार की तुलना में 10 दिन पहले ही पक कर तैयार हो जाती है, जिससे इसे बाजार में बेहतर कीमत मिल रही है और यह अधिक दिनों तक ताजी बनी रहती है. राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र की विशेष योजना : मुजफ्फरपुर स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र ने झारखंड सरकार को लीची की खेती को बढ़ावा देने के लिए एसओपी दी है. इसके तहत झारखंड सरकार ने 1000 एकड़ में लीची के बागीचे लगाने की योजना बनायी है. 10 मार्च को हुई एक बैठक में मनरेगा कमिश्नर और डॉ. विकास दास ने बिरसा हरित ग्राम योजना के तहत इस परियोजना पर चर्चा की थी. फिलहाल, झारखंड में लगभग चार हजार हेक्टेयर में लीची की खेती हो रही है. झारखंड में युवाओं की रुचि और आधुनिक कृषि तकनीकों के कारण यह राज्य लीची उत्पादन में तेजी से उभर रहा है. इसके विपरीत, बिहार में लीची के बागानों की उम्र अधिक हो जाने और युवाओं की इसमें रुचि कम होने के कारण उत्पादन और उत्पादकता में ठहराव आ गया है. – डॉ बिकाश दास, निदेशक, राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र

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