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Navratri: पट खुलते ही पटना के इन 8 शक्तिपीठ मंदिरों में उमड़ी भीड़, जानें इनकी महिमा और महत्व

Navratri: देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है पटना का बड़ी पटनदेवी मंदिर, जो पटना की अधिष्ठात्री और परिरक्षिका देवी हैं. यहां नवरात्र ही नहीं सालों भर उमड़ती है भक्तों की भीड़. इसके अलावा भी पटना में कई प्राचीन देवी मंदिर हैं जहां पट खुलते ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी. पटना के देवी स्थानों पर पढ़िए हमारे संवाददाता सुबोध कुमार नंदन की रिपोर्ट...

Navratri: पटना में हिंदुओं के लिए कई पूजनीय स्थल हैं. छोटी पटन देवी, बड़ी पटन देवी, शीतला मंदिर, दरभंगा हाउस की काली मंदिर, अखंडवासिनी मंदिर आदि यहां के लोगों के लिए न केवल मंदिर हैं, बल्कि आस्था और विश्वास के केंद्र भी हैं. यहां नवरात्र के मौके पर सप्तमी से लेकर नवमी तक अहले सुबह से देर शाम तक मां के भक्तों की लंबी-लंबी कतारें लगी रहती हैं.

पटन देवी नगर की अधिष्ठात्री और परिरक्षिका शक्ति है. साभ्यंग स्तोत्र पाठ में जो स्थान कवच का है, वही स्थान पटना के तीर्थों में बड़ी पटन देवी का है. देश के 51 शक्तिपीठों में पटन देवी का अपना महत्वपूर्ण स्थान है. पुराण और आगम के अनुसार सती के सभी अंग 51 स्थानों पर गिरे, वे शक्तिपीठ कहलाये. पटना में दो पटनदेवी हैं. एक बड़ी पटनदेवी और दूसरी छोटी पटनदेवी.

बड़ी पटन देवी

पश्चिम दरवाजा के पास गुलजारबाग स्टेशन से लगभग दो किलोमीटर उत्तर महाराजगंज में स्थित है. बड़ी पटनदेवी को पुराणों में सर्वानंदकारी देवी कहा गया है. तंत्रचूडामणि तंत्र के अनुसार मगध में सती की दक्षिण जांघ गिरी थी. बड़ी पटनदेवी में सती की जांघ गिरी थी. यहां तांत्रिक पद्धति से पूजा होती है. महाअष्टमी की रात में महानिशा पूजा व संधि पूजा महानवमी को सिद्धिदात्री पूजन, कन्या पूजन व दशमी को अपराजित पूजन, शस्त्र पूजन और शांति पूजन का आयोजन होता है.

छोटी पटन देवी मंदिर

यह मंदिर हरिमंदिर साहिब की गली में है. यहां देवी सती का पट यानी वस्त्र यहां के कुएं में गिरा था. कुएं को ढक कर उस पर एक वेदी बना दी गयी है, जिसकी पूजा की जाती है, जो मंदिर के पश्चिम वाले बरामदे में है. इस मंदिर में भी महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की प्रतिमाएं स्थापित हैं.16वीं शताब्दी में बादशाह अकबर के सेनापति राजा मानसिंह ने यहां एक मंदिर की स्थापना करायी थी. इस देवी की पूजा-अर्चना वैष्णव रीति की जाती है.

शीतला मंदिर

अगमकुआं में मां शीतला का मंदिर स्थित है, जहां प्रतिदिन सैकड़ों भक्त मां के प्रति अपनी श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह मौर्यकालीन मंदिर है. नवरात्र की सप्तमी, अष्टमी और नौवीं के अवसर पर श्रद्धालु नर-नारियों का सैलाब उमड़ पड़ता है. मंदिर में मां शीतला की प्रतिमा के अलावा सप्त मातृ शक्ति के प्रतीक स्वरूप सात पिंड और भैरव स्थान भी है. शीतला मां को दही और गंगाजल से स्नान कराया जाता है. घड़े के पानी से इसका जलाभिषेक होता है.  

दरभंगा हाउस काली मंदिर

गंगा तट पर स्थित दरभंगा हाउस परिसर में स्थित काली मंदिर के प्रति लोगों की अगाध श्रद्धा और अटूट विश्वास है. यहां स्थापित काली, जो दक्षिण काली हैं, काफी जागृत है. यह मंदिर दो सौ साल से अधिक पुराना है. इसकी स्थापना दरभंगा के महाराजाधिराज रामेश्वर सिंह ने की थी. भगवान शंकर के सीने पर चढ़ी मां काली की रौद्र रूप वाली प्रतिमा की दायीं ओर बटुक भैरव और बायीं ओर गणेश जी की प्रतिमा है. नीचे एक कलश है, जो हर वर्ष अश्विन के प्रथम दिन बदला जाता है.

मंगल तालाब काली मंदिर

पटना सिटी के मंगल तालाब के सामने सड़क किनारे प्राचीन काली मंदिर है. आदि शक्ति के रूप में मां काली की अद्भुत और हजारों साल प्राचीन चमकदार काले संगमरमर के पत्थर की बड़ी प्रतिमा विराजमान है, जिसे लोग श्मशानी काली भी कहते हैं. मां के पैर के नीचे धराशायी शंकर है और अगल-बगल लक्ष्मी और सरस्वती की छोटी प्रतिमाएं हैं. ये सभी प्रतिमाएं वस्त्र से ढकी रहती हैं, जिनके दर्शन केवल दशहरा के मौके पर पांचवी से नवमी तक होते हैं.  

दानापुर का काली मंदिर

दानापुर का काली मंदिर अग्रणी माना जाता है. मां काली की यह प्रतिमा अपने भक्तों को दर्शन मात्र से मनोकामना को पूरा करती है. गंगा तट पर स्थापित मां काली की मंदिर सदियों पुराना है. दानापुर वासियों का मानना है कि मां काली नगर की रक्षा करती हैं. नौ दिनों तक मां का विशेष शृंगार किया जाता है. इस मंदिर के 34 यंत्रों का विशेष महत्व है. नवरात्र के दौरान विशेष पूजा होती है, जिसमें 108 अड़हुल और 108 बेलपत्र की माला से शृंगार किया जाता है.

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सिद्धेश्वरी काली मंदिर

बांस घाट स्थित सिद्धेश्वरी काली मंदिर पटना की प्राचीन मंदिरों में से एक है. इस मंदिर में मां काली सप्तकुंड पर विराजमान है. मंदिर बनने से पहले यह स्थल तांत्रिक साधना के लिए प्रसिद्ध था. यहां वैदिक और तांत्रिक परंपरा से मां काली की पूजा होती है. बलि के रूप में नारियल का प्रयोग होता है. यहां पर देवी के शृंगार की मान्यता है. साथ ही मां को विशेष रूप से गुड़हल के फूलों की माला को चढ़ाया जाता है. नवरात्र के मौके पर मंदिर में 13 कलश स्थापित किये जाते हैं.

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अखंडवासिनी मंदिर

यह मंदिर गोलघर के पास (पश्चिम) स्थित है. यह मंदिर 120 साल पुराना है. यहां पर मां काली की पूजा होती है. मंदिर में 118 साल से अखंड दीपक लगातार जल रहा है. अखंड दीपक जलने के कारण इसे अखंडवासिनी मंदिर कहा जाता है.  मान्यता है कि मंदिर में खड़ी हल्दी और 9 उड़हुल 21 फूल और सिंदूर चढ़ाने से मां भक्तों की मन्नत पूरी करती हैं. जिनकी मनोकामना पूर्ण होती है, वे मंदिर में आकर दीपक जलाते हैं. नवरात्र में घी और तेल (तीसी) के दीये जलाने की परंपरा है.

Anand Shekhar
Anand Shekhar
Dedicated digital media journalist with more than 2 years of experience in Bihar. Started journey of journalism from Prabhat Khabar and currently working as Content Writer.

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