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Patna News : पटना जीपीओ बिहार का पहला ऐतिहासिक डाक भवन घोषित

पटना जीपीओ भवन को अब इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज के संरक्षण में सौंपा गया है.

सुबोध कुमार नंदन, पटना : पटना जीपीओ भवन को अब इंटैक ( इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज ) के संरक्षण में सौंपा गया है. यह निर्णय न केवल पटना जीपीओ के लिए ऐतिहासिक क्षण है, बल्कि पूरे बिहार में डाक विभाग की विरासत इमारतों के संरक्षण के क्षेत्र में यह मील का पत्थर साबित होगा. यह बिहार का पहला डाक भवन है, जिसे इंटैक के संरक्षण में लाया गया है. डाक विभाग ने राज्य की विरासत डाक इमारतों के संरक्षण के लिए बिहार सर्कल हेरिटेज सेल बनाया है. इसमें वरिष्ठ अधीक्षक (मुख्यालय), कार्यपालक अभियंता (सिविल) और इंटैक पटना चैप्टर के संयोजक को सदस्य नामित किया गया है.

एक जुलाई, 1917 को जनता के लिए खोला गया

पटना जीपीओ भवन का इतिहास 1912 से जुड़ा है, जब बंगाल से अलग होकर बिहार स्वतंत्र प्रांत बना. ब्रिटिश काल में यह भवन ब्रिटिश रिवाइवल गोथिक शैली में 1.93 लाख वर्गफुट में 2.69 लाख रुपये से बनाया गया था. इसका निर्माण 1912 में शुरू हुआ और इसे एक जुलाई, 1917 को जनता के लिए खोला गया. भवन की नींव लॉर्ड चार्ल्स हार्डिंग ने रखी थी और इसके वास्तुकार जोसेफ फिलिप्स मैनिंग्स थे.

इंटैक के संरक्षण में रहेगा यह भवन

अब जब इस भवन को विरासत स्थल के रूप में चिह्नित कर संरक्षित किया गया है, इंटैक इसकी मरम्मत, सौंदर्यीकरण और रखरखाव की जिम्मेदारी संभालेगा. इसके लिए विस्तृत विजन प्लान और कंजर्वेशन रिपोर्ट तैयार की जायेगी, जिसे डाक विभाग की हेरिटेज कंजर्वेशन कमेटी को भेजा जायेगा. हेरिटेज कमेटी ने पटना जीपीओ के साथ-साथ पीटीसी दरभंगा और भागलपुर प्रधान डाकघर को भी सूचीबद्ध कर इनके संरक्षण के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और इंटैक से सहयोग लेने की सिफारिश की है. कमेटी ने यह भी अनुशंसा की कि पटना जीपीओ में छत की लीकेज, प्लास्टर टूटना और संरचनात्मक नुकसान जैसे कार्य तुरंत आरंभ किये जाएं, ताकि जनसुरक्षा सुनिश्चित की जा सके. डाक विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि पटना जीपीओ सिर्फ एक डाकघर नहीं, बल्कि यह इतिहास की अमूल्य धरोहर है. इसे इंटैक के संरक्षण में देना हमारी साझा विरासत को सुरक्षित रखने की दिशा में बड़ा कदम है. इंटैक पटना चैप्टर के संयोजक भैरव लाल दास ने बताया कि यह बिहार की सांस्कृतिक अस्मिता को संजोने की पहल है. आने वाले समय में ऐसे और भवनों की पहचान की जायेगी और उन्हें भी संरक्षण की दिशा में लाया जायेगा. यह कदम न केवल ऐतिहासिक भवनों की उम्र बढ़ायेगा, बल्कि नयी पीढ़ी को भी अपने सांस्कृतिक अतीत से जोड़ने में मदद करेगा.

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