पटना हाइकोर्ट ने बिहार के अंगीभूत कॉलेजों में राजभवन द्वारा सुझाये गये लॉटरी सिस्टम से प्राचार्यों की पोस्टिंग प्रक्रिया पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है. साथ ही कोर्ट ने राज्यपाल कार्यालय को कहा है कि अगर वह चाहें तो अधिसूचना में सुधार करके फिर से नये सिरे से कानून के अंदर नयी अधिसूचना निकाल सकते हैं. जस्टिस राजेश वर्मा की एकलपीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए संबंधित अधिसूचना पर रोक लगाने का आदेश जारी किया. इस मामले में अगली सुनवाई 16 जून 2025 को होगी.
क्या है मामला
16 मई को राजभवन की ओर से बिहार के 13 सरकारी विवि के वीसी को जारी पत्र के अनुसार अंगीभूत कॉलेजों में प्राचार्यों की पोस्टिंग लॉटरी से कराने का निर्देश दिया था. इस अधिसूचना के खिलाफ सुहेली मेहता एवं अन्य ने हाइकोर्ट के ग्रीष्मकालीन न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेश कुमार वर्मा की अदालत में अर्जी दी थी.
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दोनों पक्षों के वकीलों की दलील…
आवेदकों की ओर से अधिवक्ता सिद्धार्थ प्रसाद ने पक्ष रखते हुए कहा कि विश्वविद्यालय कानून को नजरअंदाज कर ऐसा किया जा रहा है. वहीं, कुलाधिपति के अधिवक्ता राजीव रंजन पांडेय ने अर्जी का विरोध करते हुए कहा कि प्राचार्यों की तैनाती कानून के तहत की जा रही है. तैनाती में पूरी पारदर्शिता रहे, इसलिए यह नीति अपनायी गयी है.
क्या था कुलाधिपति का आदेश
30 अप्रैल को राजभवन ने 116 प्रधानाचार्यों के कॉलेज आवंटन पर रोक लगा दी थी. जिसके बाद 16 मई को राजभवन ने नयी अधिसूचना जारी कर कॉलेज आवंटन की प्रक्रिया पर्ची के माध्यम से करने का प्रस्ताव दिया. इसके लिए हर विश्वविद्यालय में कुलपति की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय पदस्थापन समिति का भी गठन किया जाना था.
कैसे होनी थी लॉटरी प्रक्रिया
कॉलेजों की अनुमंडलवार अंग्रेजी वर्णमाला के क्रम में सूची बनायी जानी थी. अनुशंसित प्रधानाचार्यों से नियुक्ति के लिए कॉलेज नहीं, अनुमंडल का विकल्प मांगा जाना था. सभी कैंडिडेट के नाम की अलग-अलग पूर्जी तैयार कर एक ही डिब्बे में डाला जाना था. जिसे चतुर्थ वर्गीय कमी द्वारा एक-एक कर निकालकर कॉलेज आवंटन किया जाना था.