संवाददाता, पटना : डेवलपमेंट मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट (डीएमआइ) पटना में गुणात्मक शोध की विधियां, महत्ता और जरूरी एहतियात पर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. मुख्य वक्ता नॉर्दन मिशिगन विश्वविद्यालय, अमेरिका के सोशल वर्क विभाग में संकाय सदस्य डॉ विकास कुमार ने कार्यशाला में गुणात्मक शोध विधियों की प्रारंभिक समझ के साथ-साथ वैश्विक स्तर की महत्ता को भी रेखांकित किया. मार्गरेट विश्वविद्यालय, एडिनबर्ग, यूनाइटेड किंगडम से ग्लोबल हेल्थ में डॉक्टरेट, डॉ विकास बिहार के अस्पतालों में मानसिक स्वास्थ्य एवं गैर-संचारी रोग कार्यक्रमों के कार्यान्वयन पर शोध किया है. उन्होंने कहा कि बिहार जैसे विविध विचार और व्यवहार वाले राज्य में मानव दृष्टिकोण को समझना दक्ष शोधार्थी के लिए भी चुनौती थी और है. गुणात्मक शोध जटिल मुद्दों की व्याख्या सहजता से प्रदान करता है. सामाजिक असमानता, मानसिक स्वास्थ्य, समुदाय आधारित जीवन शैली जैसी विषयों को बेहतर रूप से समझने के लिए यह अनिवार्य जैसा हो गया है. निदेशक प्रो देबी प्रसाद मिश्रा ने कहा कि शोध की गुणवत्ता सुनिश्चित करने में विधि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. गुणात्मक शोध मानव अनुभव की गहराई को समझने में मदद करता है. वर्तमान दौर में तनाव के बढ़ते मामलों को देखते हुए इसकी प्रासंगिकता और बढ़ जाती हैं. डीएमआइ में केयर सेंटर के समन्वयक प्रो सूर्यभूषण ने कहा कि यह कार्यशाला शिक्षक और शोधार्थियों को मानव भावना, दृष्टिकोण, धारणा, व्यवहार आदि को समझने में सहयोग प्रदान करेगा. डीन अकादमिक प्रो शंकर पूर्वे ने धन्यवाद ज्ञापन किया. शोध की गुणवत्ता के लिए यह है जरूरी : – प्रतिभागियों की गोपनीयता और निजता का पूर्ण सम्मान हो – शोध डेटा को संग्रहित, विश्लेषित और प्रस्तुत करने में नैतिक मानदंडों का पालन – प्रतिभागियों की सहमति अनिवार्य तत्व है – शोधकर्ता को व्यक्तिगत या सांस्कृतिक पूर्वग्रहों से बचते हुए वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण रखना – लक्षित समूह के प्रति संवेदनशील और आत्मीयता का भाव रखना – ऑडियो, वीडियो रिकॉर्ड करने से पहले प्रतिभागियों को विश्वास में लेना – प्रतिभागियों की सुरक्षा और भावना का ध्यान रखना
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