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Interview: पटना के स्लम की बच्चियों को नई उड़ान दे रही विशाखा, रेनबो होम्स के जरिए सुधार रही भविष्य

खिलखिलाहट रेनबो होम्स की प्रोग्राम मैनेजर विशाखा कुमारी 2012 से स्लम की बेटियों को बेहतर भविष्य दे रही हैं. पेश है विशाखा कुमारी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश.

Interview: गली-मोहल्लों में अक्सर आपको कूड़ा-कचरा बीनने वाले व भीख मांगने वाले बच्चे नजर आ ही जाते होंगे. हम उन्हें दुदकारते हैं, उनसे दूरी बनाते हैं. इनमें कई बच्चे पढ़ना चाहते हैं, लेकिन माहौल व संसाधनों की कमी की वजह से वे बेहतर भविष्य से वंचित होकर नशे के आदी हो जाते हैं. ऐसे में पटना शहर की कई सामाजिक व शैक्षणिक संस्थाएं हैं, जो ऐसे बच्चों को मुख्यधारा से जोड़ने का कार्य कर रही हैं. इन्हीं में एक संस्था है रेनबो होम्स. पैशन पावर्ड बाय प्रोफेशनलिज्म (पी3), जिन्होंने रेनबो फाउंडेशन ऑफ इंडिया के टायअप कर स्लम के बच्चों के भविष्य को संवार रहे हैं.

Q. कब आपको लगा कि स्लम के बच्चों के लिए कुछ करना चाहिए?

मैं रुकनपुरा की रहने वाली हूं. शहर में कई ऐसे इलाके हैं, जहां स्लम के बच्चे रहते हैं. जो समाज के मुख्य धारा से जुड़ पाने में असमर्थ हैं. मैंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वर्ष 2011 में रेनबो फाउंडेशन इंडिया से जुड़ी. फिर मुझे 2022 में पी3 के साथ टायअप करने का मौका मिला.

इस फाउंडेशन का मकसद अलग-अलग राज्यों के संस्थानों से जुड़कर स्लम के बच्चों को शिक्षित करने के साथ उन्हें एक बेहतर भविष्य देना था. सर्वे के बाद राजवंशी नगर में स्लम की लड़कियों के लिए खिलखिलाहट रेनबो होम की स्थापना की गयी. इसमें बच्चियों को पढ़ाने के साथ-साथ आर्ट एंड क्राफ्ट व क्रिएटिविटी से जुड़े कोर्सेज कराये जाते हैं.

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Interview: पटना के स्लम की बच्चियों को नई उड़ान दे रही विशाखा, रेनबो होम्स के जरिए सुधार रही भविष्य 3

Q. स्लम के बच्चों को मुख्यधारा से जोड़ना आसान नहीं होता, ऐसे में आपके सामने चुनौतियां कितनी रहीं?

हमारी संस्था शहर के स्लम की बच्चियों का सर्वे करती है. जिसकी एज ग्रुप 6-18 साल है. सर्वे के बाद उन बच्चियों की लिस्ट उनके जरूरत और आर्थिक स्थिति के अनुसार तैयार की जाती है. सबसे बड़ा चैलेंज उनकी काउंसेलिंग के दौरान आती है, जब माता-पिता इसके पक्ष में नहीं होते हैं.

एक बच्ची को सेंटर तक लाने में 2-3 महीने तक का वक्त लग जाता है. कई बार बेटियां पढ़ना नहीं चाहती हैं, लेकिन हम उन्हें एक बार सेंटर लेकर आते हैं. एक से दो दिन रहने को बोलते हैं. उन्हें सरकार की ओर से मिलने वाली सुविधाओं के बारे में बताते हैं. यह प्रक्रिया बहुत धैर्य के साथ करना होता है. 100 बच्चों में 10-20 प्रतिशत बच्चियां मेरिट वाली होती हैं, जो अपने आगे पढ़ने का सपना पूरा करती हैं. कई बच्चियां बेंगलुरु, तमिलनाडु, भोपाल में पढ़ाई के साथ नौकरी कर रही हैं.  

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Q. पढ़ाई के साथ बच्चियों के सर्वांगीण विकास के लिए क्या खास किया जाता है?

राजवंशी नगर स्थित राजकीय नवीन नव विद्यालय में चार कमरे मिले हैं, जिसमें खिलखिलाहट रेनबो होम्स की बच्चियां रहती हैं. निनाद से बच्चियां नृत्य सीखती हैं. मार्शल आर्ट्स भी प्रशिक्षित प्रशिक्षक सीखाते हैं. उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान से मधुबनी पेंटिंग की ट्रेनिंग लेती हैं. उनकी रुचि के अनुसार प्रशिक्षित किया जाता है, जो समय-समय में शहर में होने वाले खास आयोजनों का हिस्सा भी बनती हैं.

Anand Shekhar
Anand Shekhar
Dedicated digital media journalist with more than 2 years of experience in Bihar. Started journey of journalism from Prabhat Khabar and currently working as Content Writer.

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