Voter List Case: बिहार में वोटर लिस्ट पुनरीक्षण को लेकर राजनीति तेज हो गई है. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है. आज सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को लेकर सुनवाई भी जारी है. 9 जुलाई को विपक्षी पार्टियों ने इसका विरोध करते हुए राजधानी पटना में जोरदार प्रदर्शन किया. आज कोर्ट में सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग के वकील ने कोर्ट से कहा कि अभी तक सभी याचिकाओं की कॉपी नहीं मिली है, इसलिए पक्ष स्पष्ट रूप से रख पाना मुश्किल हो रहा है.
याचिकाकर्ताओं के वकील ने रखी अपनी बात
वहीं, दूसरी तरफ याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश हुए वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि वोटर लिस्ट रिविजन का प्रवाधान संविधान में मौजूद है और यह प्रक्रिया सांवैधानिक तौर पर की जा सकती है. बिहार में फिलहाल 7 करोड़ से अधिक वोटर हैं और पूरी प्रक्रिया को बहुत तेजी से अंजाम दिया जा रहा है. उनका कहना है कि चुनाव आयोग को वोटर लिस्ट रिविजन का अधिकार तो है, लेकिन प्रक्रिया कानून सम्मत, पारदर्शी और व्यावहारिक होनी चाहिए. इतनी बड़ी प्रक्रिया को तेजी से और जल्दबाजी में अंजाम दिया जा रहा है, जो चिंता का विषय है.
वकील ने जरूरी दस्तावेजों पर उठाए सवाल
साथ ही याचिकाकर्ताओं के वकील ने सुप्रीम कोर्ट से यह सवाल किया कि चुनाव आयोग की तरफ से वोटर सत्यापन में 11 दस्तावेज मान्य रखे गये हैं. लेकिन, आधार कार्ड और वोटर आईडी जैसे अहम पहचान पत्र को इस लिस्ट से बाहर रखा गया है. उन्होंने कहा, “जब देशभर में पहचान के सबसे विश्वसनीय दस्तावेज के तौर पर आधार और वोटर आईडी को माना जाता है, तो उन्हें इस प्रक्रिया से बाहर रखना तर्कसंगत नहीं है. इससे पूरा सिस्टम मनमाना और भेदभावपूर्ण नजर आता है.”
कपिल सिब्बल ने भी दागे सवाल
इस मामले में सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने भी कोर्ट से सवाल पूछे हैं. उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग के पास इसमें कोई शक्ति नहीं है. वे कौन होते हैं यह कहने वाले कि हम नागरिक हैं या नहीं. चुनाव आयोग कहता है कि अगर आप फॉर्म नहीं भरते हैं तो आप मताधिकार से वंचित हो सकते हैं. इसकी अनुमति कैसे दी जा सकती है? जिम्मेदारी उन पर है, मुझपर नहीं. उनके पास यह कहने के लिए सबूत तो होना चाहिए कि मैं नागरिक नहीं हूं. कपिल सिब्बल के सवालों पर सुप्रीम कोर्ट ने जवाब देते हुए कहा कि क्या यह देखना उनका अधिकार नहीं है कि योग्य वोट दें और अयोग्य मतदाता वोट न दें.
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