Women of the Week: बीते गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) की पूर्व संध्या पर केंद्र सरकार ने वरिष्ठ सुजनी कलाकार निर्मला देवी को पद्मश्री अवार्ड देने का ऐलान किया था. 76 वर्षीय निर्मला देवी आज किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं. इन्होंने सुजनी कढ़ाई व सुजनी कलाकृतियों को न केवल पुनर्जीवित किया, बल्कि देश-विदेश तक में लोकप्रिय बनाया. निर्मला देवी ने सुजनी कढ़ाई कला को राष्ट्रीय पटल पर एक नयी पहचान दी, जिसके लिए उन्हें यह अवार्ड देने की घोषण की गयी है. हालांकि उन्हें पहले भी कई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय व राज्यस्तरीय अवार्ड मिल चुका है. पहली सुजनी कढ़ाई कलाकार निर्मला देवी से पेश है बातचीत के प्रमुख अंश.

आप इस कला से कैसे जुड़ीं ? तब आपकी उम्र क्या रही होगी?
मैंने इस कला को अपनी मां जानकी देवी से सीखा था. वह भी शौकिया काम करती थीं. मैं छह साल की उम्र से सुजनी कढ़ाई कर रहीं हूं. 1988 में मेरे गांव में अदिति नामक एक गैर-लाभकारी संस्था से बीजी श्रीनिवासन आयी थीं. वे इस गांव में गरीबी को देखकर वहां पर महिलाओं से बात की. बीजी श्रीनिवासन को सुजनी कला के बारे में जानकारी मिली. पहले वह इससे जुड़ीं, उसके बाद तीन महिलाओं की टीम बनी. बीजी दीदी ने कपड़ा और धागा लाकर दिया, जिससे एक बेडसीट तीन लोगों ने मिलकर बनाया. उस वक्त तीनों को इस काम के लिए 75 रुपये मिले थे.

उस वक्त आपने अन्य महिलाओं को इससे कैसे जोड़ा?
मेरे गांव भुसरा में उस वक्त अदिति संस्था के साथ महिला विकास समिति कोऑपरेटिव की शुरुआत हुई थी. बीजी दीदी ने इस कला और रोजगार के लिए अधिक से अधिक महिलाओं को जोड़ने को कहा था. जिसके लिए वह घर-घर महिलाओं से इस कला से जुड़ने बात कीं. कुछ इसके लिए राजी हुईं, तो कुछ के घरवालों ने सवाल उठाए. जो राजी हुई उन महिलाओं को प्रशिक्षण के लिए जोड़ा. महिला विकास कॉपरेटिव था, तो सिर्फ अपने पंचायत में काम कर सकते थे. जिसके बाद दिल्ली से कैलाश आये और उन्होंने इसे रजिस्टर करवाया. जिसके बाद अलग-अलग जिलों में इस कला का प्रशिक्षण देना शुरू किया. एक साल में 700 महिलाएं जुड़ गयी. धीरे-धीरे इसका नेटवर्क बढ़ा. अभी मेरे साथ 200 महिलाएं जुड़कर काम कर रही हैं.

आप मार्केटिंग प्रशिक्षण के लिए दिल्ली भी गयी थीं. इसके बारे में बताएं?
1989-90 दो साल तक बीजी श्रीनिवासन दीदी ने हमारे उत्पादों को खरीदा और इसकी मार्केटिंग की. फिर वह वापस दिल्ली चली गयीं. जाने से पहले 1991 में उन्होंने मुझे खुद से मार्केटिंग करने को कहा, जिसके लिए उन्होंने मुझे दिल्ली बुलाया और ट्रेन का टिकट दिया. पहली बार अकेले दिल्ली गयी जहां वे मुझे सेंट्रल कॉटेज लेकर गयीं जहां, डिजाइनर सुशांत मिले. उनसे मुझे बेडशीट, कुशन कवर के माप के बारे में पता चला. मैं जो अपना बेडशीट लेकर गयी थी, उसकी कीमत मुझे 1300 रुपये और 750 रुपये मिले.
आप प्रशिक्षण देने के लिए विदेश भी गयी थीं?
1991 और 2003 में विदेश गयी थी. पहली बार लंदन और उसके बाद अमेरिका जाकर सुजनी कला का डेमो दिया था. अभी मेरी टीम बेडशीट, कुशन कवर, साड़ी, दुपट्टा बनाती है. और ये सभी उत्पाद जयपुर, अहमदाबाद, रायपुर, दिल्ली जाता है. इस काम में मुझे सबका सहयोग मिल रहा है.
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