अरुण कुमार, पूर्णिया
बिहार विधानसभा चुनाव में अब कुछ ही महीने बचे हैं और इस बीच अहमदाबाद में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन में भाग लेने के लिए पूर्णिया के निर्दलीय सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव को आया बुलावा कोसी सीमांचल के राजनीतिक समीकरण में बड़े उथल-पुथल का संकेत माना जा रहा है.
राजनीतिक हलकों में यह कयास लगाया जा रहा है कि कांग्रेस ने कोसी-सीमांचल में करीब 30 साल पहले राजद व अन्य दलों के हाथों जो सीटें खो दी थीं, पप्पू यादव के सहारे उनपर फिर काबिज हुआ जा सकता है. राजनीतिक प्रेक्षकों की मानें तो मौजूदा हालात में कांग्रेस नेतृत्व को लग रहा है कि इस रास्ते अपने पुराने वोट बैंक को पुनः प्राप्त किया जा सकता है.
दरअसल, अहमदाबाद में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआइसीसी) के अधिवेशन में भाग लेने के लिए पूर्णिया के निर्दलीय सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव को भी न्योता मिला है. सांसद पप्पू यादव ने भी इसकी पुष्टि की. वह पूर्व से तयशुदा कार्यक्रम को संक्षिप्त कर मंगलवार को ही यहां से रवाना हो गये.
सीमांचल में अपने बलबूते खड़ा होना चाहती है कांग्रेस
कांग्रेस के इस आमंत्रण को लेकर राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह के कयास लगाये जा रहे हैं. राजनीति के जानकार कांग्रेस में तेजी से बदलते घटनाक्रम को इस साल होनेवाले विधानसभा चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं. कयास यह लगाया जा रहा है कि कन्हैया के बाद अब कांग्रेस पप्पू यादव को आगे कर कोसी और सीमांचल में सामाजिक न्याय के उस समीकरण में अपनी पैठ जमाना चाहती है, जिसपर अबतक राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और अब तेजस्वी यादव का एक तरह से एकाधिकार माना जाता रहा है.
इस समीकरण वाले वोटों पर अबतक कांग्रेस राजद के रहमोकरम पर ही आश्रित थी. इसी के चलते राजद के साथ कांग्रेस को चुनावी गठबंधन के लिए विवश हो जाना पड़ताहै. यह कमजोर कड़ी राजद जानती है.इसलिये बदलते दौर में कांग्रेस एक बार फिर इन इलाकों में अपने बलबूते पर खड़ा होना चाहती है. इसके लिए कोसी-सीमांचल में कांग्रेस को एक ऐसे नेता की दरकार है, जिसकी सीधी पकड़ इन वोटरों पर हो.
पार्टी के अंदर अभी ऐसा कोई नेता नहीं, जो कोसी-सीमांचल में पार्टी को नयी धार दे सके. इस मायने में पप्पू यादव की राजनीति मौजूदा दौर में कांग्रेस के लिए फिट बैठ रही है. लोकसभा चुनाव में जीत के बाद पप्पू यादव की कांग्रेस से न केवल नजदीकियां बढ़ी हैं, बल्कि पार्टी के लिए एकतरफा झंडा बुलंद करते रहे हैं. इसी का नतीजा है कि कांग्रेस नेतृत्व पप्पू यादव की ताकत को विधानसभा चुनाव में इस्तेमाल कर सकती है.
पार्टी के अंदर भी गठबंधन को लेकर उठे थे सवाल
इस साल के फरवरी माह में पूर्णिया में बिहार प्रदेश कांग्रेस के सह प्रभारी शहनवाज आलम की अध्यक्षता में आयोजित पार्टी कार्यकर्ता सम्मेलन में भी गठबंधन की मजबूरी को लेकर कार्यकर्ताओं ने सवाल उठायेथे. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तथा पार्टी के पूर्व प्रदेश प्रवक्ता वीके ठाकुर ने कहा था कि अगर गठबंधन के सहयोगी कांग्रेस का साथ देते हैं तो उनके साथ, अगर वे साथ नहीं देते हैं तो उनके बिना और अगर वे विरोध करते हैं तो इसके बावजूद कांग्रेस को अपने बलबूते पर चुनाव की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए. पप्पू यादव को आगे कर कांग्रेस शायद इसी दिशा में आगे बढ़ रही है.
कभी कांग्रेस का गढ़ था सीमांचल
दरअसल, महागठबंधन के सत्ता तक पहुंचने के रास्ते सीमांचल की ओर से ही निकलते हैं. एक वक्त था जब सीमांचल कांग्रेस का गढ़ माना जाता था. कालांतर में धीरे-धीरे कांग्रेस का यह दुर्ग ढहता चला गया. बाद के कालखंडों में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद एम और वाइ समीकरण के बलबूते 15 साल तक सत्ता पर काबिज रहे. 2020 के विधानसभा चुनाव में भी तेजस्वी यादव के विजयी रथ को सीमांचल ने ही रोक लिया.
सीमांचल की कुल 24 में से मात्र एक सीट पर राजद खाता खोल पायी. इस बार राजद और कांग्रेस दोनों की निगाह इन वोट बैंकों पर है. हाल ही में इफ्तार के बहाने तेजस्वी यादव भी पूर्णिया का दौरा कर चुके हैं. एक सप्ताह पूर्व रोजगार दो, पलायन रोको यात्रा के तहत कन्हैया कुमार भी यहां पदयात्रा कर चुके हैं. उनकी पदयात्रा में पप्पू यादव भले ही शामिल नहीं हुए, लेकिन उनके समर्थक जरूर थे. हाल ही में पूर्णिया और अररिया के जिलाध्यक्ष को भी बदल कर सामाजिक न्याय के पक्षधर लोगों को जगह दी गयी है.
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