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किराए के मकान में चल रहे हैं,किस्को व पेशरार के अधिकांश आंगनबाड़ी केंद्र.

किस्को और पेशरार प्रखंडों में विकास की बात करना बेमानी लगता है.

फोटो. जर्जर भवन में संचालित आंगनबाड़ी केंद्र फोटो. आंगनबाड़ी केंद्र जाने का रास्ता संदीप साहू किस्को और पेशरार प्रखंड में आंगनबाड़ी केंद्रों की स्थिति बदहाल किस्को. किस्को और पेशरार प्रखंडों में विकास की बात करना बेमानी लगता है. यहां की अव्यवस्था और प्रशासनिक उदासीनता ने आंगनबाड़ी केंद्रों की हालत बेहद खराब कर दी है. बैठकों में योजनाओं की खूब वाहवाही होती है, लेकिन जमीनी हकीकत खराब है. इन केंद्रों की स्थिति देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिले में विकास की गति कितनी धीमी है. 112 आंगनबाड़ी केंद्र में 26 किराये पर किस्को प्रखंड में कुल 112 आंगनबाड़ी केंद्र हैं, जिनमें से 26 किराये के भवनों में संचालित हो रहे हैं. 78 केंद्र अपने भवन में हैं, जबकि 8 स्कूल या सामुदायिक भवनों में चल रहे हैं. यहां एक सेविका का पद रिक्त है. वहीं पेशरार प्रखंड में 49 केंद्र हैं, जिनमें 41 अपने भवन में, 6 किराये पर और 2 स्कूलों में संचालित हो रहे हैं. यहां 2 सेविका और 1 सहायिका का पद रिक्त है. अधिकांश केंद्रों का अपना भवन तक नहीं बन पाया है. कई पुराने भवनों को विभाग द्वारा मरम्मत कर उपयोग में लाया जा रहा है. लेकिन इन केंद्रों में बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है. पेयजल के लिए चापाकल की व्यवस्था नहीं है या वे खराब पड़े हैं. बच्चों को पानी पीने के लिए घर लौटना पड़ता है या इधर-उधर भटकना पड़ता है, जिससे उन्हें परेशानी होती है. कई केंद्रों तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं है. बच्चे खेतों के बीच कीचड़ से होकर केंद्र पहुंचते हैं, और बारिश के दिनों में स्थिति और भी खराब हो जाती है. सरकार द्वारा बच्चों की उपस्थिति बढ़ाने के लिए सेविकाओं को निर्देश दिये जाते हैं, लेकिन सड़क न होने के कारण बच्चों की संख्या नगण्य रहती है. पोषाहार वितरण में भी भारी अनियमितता पोषाहार वितरण में भी भारी अनियमितता है. कई केंद्रों में बच्चों को मिलने वाला पोषाहार बच्चों तक पहुंचने से पहले ही गायब कर दिया जाता है और बाजार में बेच दिया जाता है. बच्चों की शारीरिक गतिविधियों को मापने के लिए आवश्यक सामग्री भी उपलब्ध नहीं है. विभागीय उदासीनता के कारण मेन्यू के अनुसार भोजन नहीं बनता और खानापूर्ति कर दी जाती है. इससे राज्य सरकार के निर्देशों का उल्लंघन होता है. दुर्गम और पहाड़ी इलाकों में महिला सुपरवाइजर द्वारा नियमित निरीक्षण नहीं किया जाता है, निरीक्षण केवल कागजों पर होता है और अनियमितता पाये जाने पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती. सरकार के निर्देशों के अनुसार आंगनबाड़ी केंद्रों पर स्कूल पूर्व शिक्षा, टीकाकरण, रेफरल सेवा, किशोरी स्वास्थ्य व पोषण, गर्भवती व प्रसूता महिलाओं की जांच जैसी सुविधाएं दी जानी चाहिए, लेकिन अधिकांश केंद्रों पर ये सेवाएं नहीं मिलतीं. ग्रामीणों का कहना है कि अधिकतर केंद्रों में बच्चों की संख्या 5 से 10 के बीच होती है, और मेन्यू के अनुसार खाना नहीं बनता. बच्चों की संख्या बढ़ाकर फर्जी बिल बनाकर पैसे वसूले जाते हैं. योजनाओं के नाम पर भी वसूली होती है. सेविका और सहायिका का चयन भी मनमर्जी से किया जाता है, जिसमें योग्य उम्मीदवारों की अनदेखी कर अपनों को तरजीह दी जाती है. जर्जर केंद्रों की सूची भेज दी गयी है : महिला सुपरवाइजर सीडीपीओ का कई प्रखंडों में प्रभार होने के कारण वे सप्ताह में केवल एक-दो दिन ही प्रखंड पहुंचते हैं. महिला सुपरवाइजर का कहना है कि जर्जर केंद्रों की सूची भेज दी गयी है और उन्हें चिन्हित कर किराये के भवनों में संचालन किया जा रहा है. लेकिन यह समाधान अस्थायी है और स्थायी सुधार की आवश्यकता है.

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