कुड़ू़ फाकाकशी की जिंदगी जीते हुए भी बच्चों के सुनहरे भविष्य का सपना देखते हुए माराडीह गांव के दो भाई कैलाश नाथ भारती और केदार नाथ भारती ने लगभग 15 एकड़ पुश्तैनी जमीन विद्यालय के लिए दान कर दी. कैलाश नाथ भारती के पुत्र राजेंद्र भारती उर्फ राजा भारती ने चंदा जुटाकर और खुद के पैसे से स्कूल भवन बनवाया. आज विद्यालय के पास आठ एकड़ जमीन है, जिसमें तीन एकड़ खेल मैदान, दो एकड़ छात्रावास और दो एकड़ पर वृक्षारोपण है. साल 1950 में कुड़ू प्रखंड में एकमात्र प्राथमिक विद्यालय था. उच्च शिक्षा के लिए कोई हाई स्कूल नहीं था. बाजारटांड़ में कुछ गण्यमान्यों ने हाई स्कूल शुरू किया, लेकिन भवन नहीं था. तब माराडीह के इन भाइयों ने 14 एकड़ 88 डिसमिल जमीन दान दी. उस समय जमीन की कीमत बहुत कम थी, लेकिन आज उसकी कीमत करोड़ों में है. चंदा कर किया कमरों का निर्माण : सरकार ने केवल दो कमरों के निर्माण के लिए दो हजार रुपये स्वीकृत किये थे. ग्रामीणों ने चार कमरों के निर्माण का संकल्प लिया. राजेंद्र भारती ने चंदा किया और अपनी देखरेख में चार कमरों का निर्माण कराया. फरवरी 1955 में बसंत पंचमी के दिन स्कूल की शुरुआत हुई. पंचम से दशम कक्षा तक पढ़ाई शुरू हुई. कुड़ू के अलावा चान्हो, चंदवा, मांडर तक के बच्चों का नामांकन हुआ. गरीब बच्चों के लिए छात्रावास भी बना. चार कमरों से 35 तक, सैकड़ों ने पायी सरकारी नौकरी : गांधी मेमोरियल हाई स्कूल माराडीह की स्थापना 1955 में हुई. तब चार कमरे थे. आज 35 कमरे हैं. 2011 में इसे टेन प्लस टू हाई स्कूल में अपग्रेड किया गया. वर्तमान में नवम कक्षा में 250, दशम में 305, ग्यारहवीं में 250 और बारहवीं में 300 छात्र हैं. दस शिक्षक हाई स्कूल में और दस टेन प्लस टू में कार्यरत हैं. यहां से पढ़कर सैकड़ों विद्यार्थी बीपीएससी, बीएसएफ, सीआरपीएफ, पुलिस, शिक्षक आदि पदों पर पहुंचे हैं. कैलाश नाथ भारती के परिवार को आज भी मलाल नहीं : कैलाश नाथ भारती तथा केदार नाथ भारती के द्वारा विद्यालय निर्माण के लिए लगभग 15 एकड़ जमीन दान देने के फैसले के 75 साल बाद भी परिवार को मलाल नहीं है. कैलाश नाथ भारती के पुत्र राजेंद्र भारती उर्फ राजा भारती के पुत्रों इंद्रजीत भारती, विश्वजीत भारती तथा अन्य के परिजनों ने बताया कि विद्यालय भवन के लिए जमीन दान देकर कोई गलती नहीं हुई. आज जमीन की कीमत करोड़ों में है लेकिन कोई मलाल नहीं है. कोई मलाल नहीं, गर्व है : इंद्रजीत भारती : राजेंद्र भारती के पुत्र इंद्रजीत भारती कहते हैं कि उनके पिता ने अपनी पढ़ाई छोड़कर स्कूल निर्माण के लिए चंदा किया और मेहनत की. उन्होंने बताया कि आज भी परिवार को जमीन दान देने का कोई पछतावा नहीं है, बल्कि वे इसे सौभाग्य मानते हैं.
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