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गजानन माता धाम में वार्षिक मेला शुरू, पहुंचते हैं पड़ोसी राज्यों के लाखों श्रद्धालु

झारखंड-बिहार सीमा के कररबार नदी तट स्थित चर्चित गजानन माता धाम में श्रद्धालुओं का तांता शुरू हो गया.

हुसैनाबाद. झारखंड-बिहार सीमा के कररबार नदी तट स्थित चर्चित गजानन माता धाम में श्रद्धालुओं का तांता शुरू हो गया. वैसे तो यहां सालोभर पूजा-अर्चना का दौर जारी रहता है. लेकिन वार्षिक साप्ताहिक मेला में काफी संख्या में लोग पूजा पाठ कर खुशहाली की कामना करते हैं. प्रति वर्ष चैत नवमी से चैत पूर्णिमा तक वार्षिक मेला लगता है. चैत पूर्णिमा के दिन हजारों की संख्या में लोग पहुंचते हैं. इसके अलावा यहां प्रत्येक माह की पूर्णिमा, आद्रा नक्षत्र, शारदीय नवरात्र, सावित्री वट पूजा, राम जानकी विवाह महोत्सव, लगन आदि मौसम में भी काफी भीड़ रहती है. समीपवर्ती झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़ के अलावा मध्यप्रदेश, यूपी, बंगाल आदि राज्यों से श्रद्धालुओं का आना होता है. शादी-विवाह या अन्य मांगलिक कार्यों के बाद माता दरबार मे पहुंच कर सुख-शांति की कामना करते हैं.

निराकार देवी की होती है पूजा

मंदिर परिसर में भगवान भाष्कर, शंकर भगवान आदि देवताओं के अलग-अलग मंदिर हैं. लेकिन मुख्य मंदिर में कोई विग्रह नही है. निराकार देवी शक्ति की पूजा होती है. श्रद्धालुओं का कहना है कि माता के दरबार में माथा टेकने से सुख शांति के साथ-साथ मन्नतें पूरी होती है. माता दरबार में आसन की मुद्रा ध्यान करने से शांति मिलती है. नदी का तट व पेड़ पौधे से भरा मंदिर परिसर का मनोरम दृश्य देखने योग्य होता है. यहां बेहद शांति की अनुभूति होती है.

क्या है पौराणिक मान्यता

धाम के प्रधान पुजारी जगरनाथ बाबा ने बताया कि ब्रह्मा पुराण में उल्लेख है कि देवासुर संग्राम में राक्षसों ने त्राहिमाम मचा रखा था. ब्रह्मा के निर्देश पर भगवती ललिता देवी जी भगवान शंकर के पास संवाद लेकर गयीं. तब उक्त स्थल पर भगवान शंकर हाथी के शरीर की मुद्रा में तपस्या में लीन थे. भगवती ललिता देवी भी उनके बगल में तपस्या में बैठ गयीं. फलस्वरूप देवी के कमर का ऊपरी भाग हाथी यानी गजानन का बन गया. जिसके कारण इस धाम का नाम गजानन पड़ा. श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए प्रधान पुजारी के अलावा सहायक पुजारी अयोध्या पांडेय, अखिलेश मिश्रा, कथा वाचक जयनंदन पांडेय आदि सक्रयि रहते हैं.

मिट्टी की कड़ाही में बना प्रसाद चढ़ता है

माता मंदिर में मुख्य रूप से पूड़ी व गुड़ का प्रसाद चढ़ता है. एक कड़ाही प्रसाद में 100 ग्राम घी में सवा सेर गेहूं की पूड़ी बनती है. श्रद्धालु मन्नत के अनुरूप संख्या में कड़ाही प्रसाद चढ़ाते हैं. प्रसाद के लिए जांता का पिसा हुआ आंटा सर्वोत्तम माना जाता है. मंदिर के पीछे दर्जनों मिट्टी के चूल्हे बने हैं. जिस पर ब्राह्मणों द्वारा पूड़ी प्रसाद बनाया जाता है. इसके लिए दर्जनों ब्राह्मण मौजूद रहते हैं. श्रद्धालु सुविधानुसार मंदिर परिसर में स्वयं भी प्रसाद बनाते हैं. मंदिर परिसर के उत्तरी भाग में हवन कुंड व नारियल फोड़ने का स्थान बनाया गया है. श्रद्धालु मन्नत के अनुसार पूजा, मुंडन, कथा श्रवण, वाहन पूजा आदि कराते हैं. पूजा के अनुरूप मंदिर प्रबंधन समिति द्वारा टिकट लेना जरूरी होता है. श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए लकड़ी, कड़ाही, प्रसाद आदि की दर्जनों दुकानें हैं. समिति द्वारा मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं के लिए स्नान-शौचादि के लिए भी व्यवस्था की गयी है. वार्षिक मेला व अन्य आयोजन को लेकर धाम के महंत श्री श्री108 अवध जी महाराज की देख-रेख में समिति के लोग सक्रिय हैं.

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