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जल संरक्षण से ही बढ़ेगी सिंचाई की सुविधा : निदेशक

पलामू जिले में पांच लाख 24 हजार में एक लाख 73 हजार हेक्टेयर भूमि खेती योग्य है.

मेदिनीनगर. पलामू जिले में पांच लाख 24 हजार में एक लाख 73 हजार हेक्टेयर भूमि खेती योग्य है. इसके अलावा 24 हजार हेक्टेयर भूमि परती है. लेकिन मात्र 52 हजार हेक्टेयर भूमि पर ही सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है. विभागीय जानकारी के अनुसार एक लाख 21 हजार हेक्टेयर भूमि में खेती वर्षा पर आश्रित है. यदि वर्षा अच्छी होती है. तो एक लाख 21 हजार हेक्टेयर भूमि पर भी खेती हो पाती है. कृषि विभाग के आंकड़ों को यदि देखा जाये, तो पूरे झारखंड में उपलब्ध भूमि का औसत 22.7 प्रतिशत भूमि पर खेती की जाती है. लेकिन पलामू में राज्य की औसत से भी कम भूमि पर खेती की जाती है. यहां मात्र 17.3 प्रतिशत भूमि पर ही खेती होती है. जल संरक्षण की कमी के कारण जिले में खेती पर असर पड़ता है. यहां औसतन 1100 मिलीमीटर बारिश होती है. पूरे झारखंड में औसत 1200 से 1300 मिलीमीटर वर्षा होती है. फिर भी यहां पर खेती सही ढंग से नहीं हो पाती है. यदि आंकड़ों की बात की जाये, तो महाराष्ट्र में मात्र 500 से 600 मिमी औसत वर्षा होती है. लेकिन फिर भी वहां खेती काफी अच्छे ढंग से की जाती है. इसका कारण है कि जो वर्षा होती है. उसे संरक्षित किया जाता है. पलामू में वर्षा के पानी को सुरक्षित करने का कोई उपाय नहीं है. जिसके कारण जल स्तर भी काफी नीचे चला जाता है.

जल संरक्षण से ही बढ़ायी जा सकती है सिंचाई की सुविधा : निदेशक

जोनल रिसर्च स्टेशन के निदेशक अखिलेश शाह ने कहा कि जल संरक्षण के लिए किसानों को जागरूक होना जरूरी है, ताकि खेत का पानी खेत में ही रोका जा सके. उन्होंने कहा कि प्रत्येक किसान को अपने खेत एक कोने में कम से कम चौड़ाई व लंबाई 10 फीट का एक गड्ढा होना चाहिए. ताकि बरसात का पानी उसमें जमा हो सके. जिससे उसके आसपास की जमीन में पानी रिचार्ज हो सके. इस पानी को किसान सिंचाई के लिए उपयोग में ला सकते हैं. उन्होंने कहा कि यहां पानी बर्बाद हो रहा है. पानी बह कर दूसरी जगह पर चला जाता है. उपयोग नहीं हो पाता है.

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