कुंदन चौरसिया, मोहम्मदगंज
प्रखंड के वन क्षेत्र के कई जंगलों व पहाड़ों की गोद से निकली प्रसिद्ध नदी काशी स्रोत पर डैम निर्माण के बाद नदी के निचले हिस्से में कई पहाड़ी नदियों को जीवित रखा है. जिसमे संघरा समेत कई नदियों का संगम है. पुराना सर्वे में प्रखंड की इस महत्वपूर्ण नदी का रकबा कुल 90 एकड़ बताया जाता हैं. नदी तट पर कई गांव बसे है. यह नदी पलामू की लाइफ लाइन कोयल में समाती है. इसके संगम स्थल पर शव दाह का शेड व धोबी घाट है. अतिक्रमण के कारण इसका दायरा संकीर्ण हो गया है. अतिक्रमण के कारण इसके जद में जहा बालू नजर आते थे.अब मिट्टी का टीले है. जिस पर खेती होने लगी है. नदी के किनारे करडंडा गाव के समीप नदी की भूमि पर एक और श्मशान घाट है. नदियों का अतिक्रमण व इसके तट पर लगे पेड़ो की कटाई से पर्यावरण को खतरा बन गया है. साथ ही नदिया विलुप्त के कगार पर है. नदीपर गांव के नरेश रजवार व गोला पत्थर के राजेंद्र मेहता ने इस मामले को लेकर चिंता जतायी है.पुल बनाने के नाम पर काटे गये है कई बेशकीमती पेड़
ग्रामीणों ने बताया कि इस नदी पर सड़क पुल का निर्माण कर गोलापत्थर व नदीपर गाव से होते महूदंड मुख्य पथ से जोड़ने की विभागीय प्रक्रिया शुरू किया गया है. पूर्व विधायक के कार्यकाल में इसका शिलान्यास भी किया गया. विधायक संजय कुमार सिंह के कार्यकाल में इस पुल का निर्माण शुरू किया गया है. ग्रामीणों ने बताया कि नदी पर पुल निर्माण को लेकर गोलापत्थर गांव के समीप नदी के तट पर बेशकीमती पेड़ो को काटा गया. जिसमें सबसे अधिक शीशम के पेड़ है. शीशम के साथ गमहार, सीरिश व कई फलदार पेड़ भी शामिल है. काटे गये कुछ पेड़ो की जड़ आज भी है.नदियों के अतिक्रमण से छठ महापर्व में बढ़ी परेशानी
काशी स्रोत नदी किनारे करीब दर्जनों गांव के ग्रामीणों को नदी का अतिक्रमण के कारण छठ पर्व मनाने में परेशानी बढ़ी है. पहले गांव के समीप नदी के तट पर रात भर रुकते थे. अर्ध्य देकर सुबह वापस लौटते थे. लेकिन अब अतिक्रमण के कारण पूजा अर्चना करने में काफी परेशानी होती है. कई स्वनिर्मित छठ घाट अतिक्रमण से प्रभावित हो गया है. लोग अब मोहम्मदगंज कोयल नहर व कोयल नदी में छठ पूजा करने पहुंचते है. लोगो ने बताया कि काशी स्रोत नदी का अतिक्रमण के साथ एक और पहाड़ी नदी रजबरिया का भूमि भी बड़े पैमाने पर अतिक्रमण किया गया. जिसमे अब खेती भी होती है. रजबरिया नदी की भूमि की अब खरीद बिक्री भी होने की बात कही जा रही है. ग्रामीण राजेन्द्र मेहता व नरेश राजवार ने प्रकृति का दिया हुआ उपहार नदियों को अतिक्रमण से मुक्त करने की बात कही है. जिससे इलाके में नदी व इसके किनारे लगे पेड़ पर्यावरण को संतुलित रखने में सहायक बने.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है