प्रतिनिधि, हुसैनाबाद शहर एवं ग्रामीण क्षेत्रों में धड़ल्ले से चल रहे कई आरओ मिनरल वाटर प्लांट बिना किसी सरकारी अनुमति और गुणवत्ता जांच के काम कर रहे हैं.इन प्लांटों से निकला पानी भले ही गले को कुछ देर ठंडक पहुंचा दे, लेकिन इसकी गुणवत्ता और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं. इन प्लांटों में न तो जल स्रोतों की अनुमति है, न ही जल की गुणवत्ता जांचने का कोई प्रमाण है। अधिकांश प्लांट बिना लाइसेंस के संचालित हो रहे हैं और जिम्मेदार विभागों की ओर से शायद ही कभी इनकी जांच होती हो. सरकारी दफ्तर, निजी संस्थान, घरों, दुकानों और समारोहों में इसी पानी की सप्लाई धड़ल्ले से की जा रही है.
पानी की आपूर्ति जिन गैलनों या टंकियों के जरिए की जाती है, उनमें साफ-सफाई का घोर अभाव है. गैलनों में जमी गंदगी यह साबित करती है कि सफाई और सैनिटेशन को लेकर कोई गंभीरता नहीं है. कई प्लांट तो पानी की टीडीएस जांच तक नहीं करते. सिर्फ रजिस्ट्रेशन के समय पीएचडी विभाग एक बार जांच कर लेती है, इसके बाद कोई निगरानी नहीं होती. कुछ संचालक तो बड़े जार की बजाय 500 लीटर की टंकी में पानी भरकर छोटे वाहनों के माध्यम से लोगों तक पहुंचा रहे हैं, जिससे दूषित पानी के सेवन का खतरा और बढ़ जाता है.
लाइसेंस के लिए जरूरी हैं कई शर्तेंआरओ प्लांट का संचालन करने के लिए क्वालिटी कंट्रोल लाइसेंस, सरकारी अस्पताल से प्रमाणपत्र, पानी की जांच के लिए मान्यता प्राप्त लैब और प्रशिक्षित तकनीशियन जरूरी होते हैं. प्लांट पर पानी की गुणवत्ता से जुड़ी सभी जानकारी अंकित करना भी अनिवार्य है. लेकिन अधिकतर जगहों पर इन नियमों की धज्जियां उड़ायी जा रही है. शहर और गांवों के उपभोक्ताओं ने अनुमंडल प्रशासन से इन अवैध आरओ प्लांटों की सघन जांच कर कार्रवाई करने की मांग की है, ताकि लोगों की सेहत से हो रहे खिलवाड़ पर रोक लग सके.
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