Shibu Soren Funeral: नेमरा से लौटकर सलाउद्दीन-शिबू सोरेन के पैतृक गांव नेमरा में रहनेवाले संताली परिवारों को दिशोम गुरु के स्वस्थ होकर लौट आने की उम्मीद थी. यहां के लोगों को आशा थी कि गुरुजी उनके बीच लौटकर आएंगे. निधन की खबर से पूरा नेमरा गांव रो रहा है. इस गांव के पास में चार पहाड़ ऊपर प्रचंड, चंदवा डुंगरी, ढेका कोचा और बाड़े कोचा स्थित है. इन पहाड़ों के किनारे से जानेवाले रास्ते गुरुजी की शुरुआती यात्रा के उन पलों के गवाह हैं, जब वह आंदोलन और नए परिवर्तन के लिए निकल पड़े थे. झारखंड की आवाज बनने के लिए उन्होंने नया रास्ता चुना. उस दौर में उन्होंने लोगों के हित में सोचा. झारखंड के बारे में सोचा. इस मौके पर रामगढ़ जिला मुख्यालय से करीब 50 किमी दूर गोला प्रखंड के बरलंगा चौक से नेमरा गांव जाकर पैतृक आवास में रह रहे परिजनों और ग्रामीणों से मुलाकात की. इस दौरान उन्होंने गुरुजी से जुड़ी यादें साझा कीं. आज मंगलवार को पैतृक गांव नेमरा में दोपहर दो बजे राजकीय सम्मान के साथ शिबू सोरेन का अंतिम संस्कार किया जाएगा.
खूब पैदल चला करते थे शिबू सोरेन-दीपमणि सोरेन
नेमरा के लोग ज्यादातर खेती से जुड़े हैं. शिबू सोरेन के छोटे भाई स्वर्गीय शंकर सोरेन की पत्नी दीपमणि सोरेन और उनकी बेटी रेखा सोरेन से मुलाकात हुई. उन्होंने बताया कि शिबू सोरेन पैदल खूब चला करते थे. झारखंड घूमने और आंदोलन के लिए इसी पहाड़ की तराई से निकले थे. पहाड़ के चारों ओर रास्ता था. इसी कच्चे रास्ते से शिबू सोरेन ने आंदोलन की शुरुआत की थी. दीपमणि सोरेन पैतृक आवास में रहनेवाली सबसे पुरानी सदस्य हैं. वह कहती हैं कि नेमरा गांव के इस घर में उनके पति दिवंगत शंकर सोरेन और सभी चारों भाई राजाराम सोरेन, शिबू सोरेन, लालू सोरेन और रामू सोरेन का परिवार संयुक्त रूप से रहता था. परिवार के बीच काफी तालमेल था. शिबू सोरेन का जीवन शुरू से ही सादगीभरा रहा. सादा खाना और शाकाहार भोजन उन्हें प्रिय था.
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गुरुजी जाहेरथान में पूजा करते थे तो भीड़ लग जाती थी-दीपमणि सोरेन
दीपमणि सोरेन बताती हैं कि ऊपर प्रचंड पहाड़ के किनारे-किनारे पहले सड़क होती थी, यहां से बरलंगा, सोसोकला, नावाडीह, हारूबेड़ा और गोला तक पैदल ही चले जाते थे. परिवार के लोग गेठी फल को पानी में पकाकर खाते थे. वह अधिकांश समय झारखंड में भ्रमण करते रहते थे. जाहेरथान में जब शिबू सोरेन पूजा करते थे, तो संताली समाज के लोगों की भीड़ लग जाती थी.
सोहराय और बाहा पर्व में हमेशा घर आते थे गुरुजी-रेखा सोरेन
इसी दौरान चक्रवाली गांव से फलेंद्र प्रसाद (65 वर्ष) पहुंचे. सभी लोग गुरुजी संग गुजारे गये पलों को यादकर भावुक हो उठते हैं. आंखों में थोड़ी नमी सी आ जाती है. गुरुजी सबके दिलों के करीब थे. रेखा सोरेन कहती हैं कि बाबा पिछली बार सोहराय पर्व में घर आये थे. जब से होश संभाली हूं , तब से बाबा हमेशा सोहराय और बाहा पर्व में घर आते रहे हैं. बाबा के आने की सूचना मिलते ही आसपास के नरसेहड़ी, औराडीह, संभलपुर, गोविंदपुर और धोरधोरा समेत अन्य गांव के लोग आकर बाबा से मिलते थे. लोग घंटों इंतजार करते थे, लेकिन बाबा से मिलकर ही जाते थे.
पिछले बाहा पर्व में अस्वस्थ होने के कारण नहीं आए थे बाबा
रेखा सोरेन कहती हैं कि पिछली होली के समय बाहा पर्व में बाबा अस्वस्थ होने के कारण नहीं आ पाये थे. भैया हेमंत सोरेन समेत परिवार के हर सदस्य मौजूद था. हम लोगों ने पीठा बनाया था. पारंपरिक गीतों के साथ नृत्य भी किया था, लेकिन बाबा की अनुपस्थिति सबको खलती रही. वो रौनक नहीं थी, जो उनके आने पर होती थी. इस बार उम्मीद थी कि बाबा फिर आ पाते, लेकिन ऐसा नहीं हो सका.
दिल्ली में एडमिट थे गुरुजी
दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में 19 जून 2025 से एडमिट शिबू सोरेन ने सोमवार (चार अगस्त) की सुबह आखिरी सांस ली. वे 81 साल के थे. कई बीमारियों से पीड़त थे. झारखंड के पूर्व सीएम गुरुजी का पार्थिव शरीर रांची एयरपोर्ट से सोमवार की रात रांची के मोरहाबादी आवास पहुंचा. यहां उनके अंतिम दर्शन के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ा.
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