फोटो फाइल 4आर-4- शिबू सोरेन व रूपी सोरेन से आर्शीवाद लेते फागु बेसरा. सलाउदीन झारखंड आंदोलन की गहराइयों में कई ऐसे किस्से हैं जो आज भी प्रेरणा देते हैं. एक ऐसा प्रसंग जो न केवल नेतृत्व की सादगी को दर्शाता है, बल्कि संघर्ष की भावना को भी उजागर करता है. 1980 के दशक में, जब झारखंड अलग राज्य की मांग जोर पकड़ रही थी, शिबू सोरेन ने महाजनी प्रथा के खिलाफ बिगुल फूंका. रामगढ़ और हजारीबाग के सिमरिया गांव में उन्होंने जनसभा की, जहां आंदोलनकारी पौलुष पूर्ति से उन्होंने कहा कि हमें पटना जाना है, एक लड़का दो. पौलुष ने पास खड़े नौजवान फागु बेसरा को आगे किया। फागु, बिना किसी हिचकिचाहट के, शिबू सोरेन के साथ स्टेट बस से पटना रवाना हो गये. शिबू सोरेन के साथ बस पर जैसे फागु बेसरा बैठे एक थैला उसे सौंप दिया. थैले में लाइसेंसी हथियार, पिस्टल, गोली सभी कुछ था. शिबू सोरेन ने फागू से कहा कि तुम्हें बंदूक चलाने आता है. इस पर फागू ने कहा कि पहली बार देख रहे हैं. चलाना नहीं आता है. तब शिबू सोरेन ने कहा कि कुछ गड़बड़, होगा तो पिस्टल का ट्रिगर दिखाकर कहा कि इसे दबा देना. हजारीबाग से पटना तक गोदी में थैला को रखकर पटना हुये. और झोला साथ में लेकर घूमते थे. उस समय शिबू सोरेन विधायक थे. बिहार विधानसभा में विधायक के रूप में क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. चटाई बिछाकर सो गये शिबू सोरेन पटना पहुंचने पर दोनों एक छोटे से आवास में रुके. वहां एक ही पलंग था. शिबू सोरेन ने फागु को पलंग पर सोने को कहा और खुद जमीन पर चटाई बिछाकर सो गये. फागु को यह अच्छा नहीं लगा कि बाबा जमीन पर सो रहे हैं, लेकिन शिबू सोरेन की सादगी और अनुशासन ने उसे चुप करा दिया. आधी रात को जब फागु पलंग पर बैठा रहा, तो बाबा ने डांटते हुए कहा, सो जाओ. यह दृश्य नेतृत्व की विनम्रता और त्याग का प्रतीक बन गया। ट्रेन की अपनी सीट पर बागुन सुंब्रई को सुलाया वापसी में, ट्रेन से बोकारो लौटते समय बागुन सुंब्रई भी साथ थे, जिनका टिकट कंफर्म नहीं था. शिबू सोरेन ने अपना सीट उन्हें दे दिया, फागु को दूसरे सीट पर सुलाया और खुद फर्श पर चादर बिछाकर सो गये. ये लोग बोकारो में आकर उतरे टेम्पो से जैना मोड़ गये और बस में फागु को बैठाकर रामगढ़ के लिये भेज दिया. यह घटना बताती है कि उनके लिए पद और सुविधा से ज्यादा महत्वपूर्ण था साथियों का सम्मान. जेल का ताला टूटेगा, बिनोद बिहारी महतो छूटेगा झारखंड आंदोलन के दौरान कई ऐतिहासिक घटनाएं हुईं. गिरिडीह जेल में बंद बिनोद बिहारी महतो की रिहाई के लिए शिबू सोरेन ने विशाल जनसमूह जुटाया. जेल का ताला टूटेगा, बिनोद बिहारी महतो छूटेगा जैसे नारों ने पूरे झारखंड को आंदोलित कर दिया. दो आदिवासी महिलाओं को देवघर जेल से बिना शर्त रिहा कराया 1988 में रामगढ़ के हेसागढ़ा में आंदोलन के दौरान दो आदिवासी महिलाओं को देवघर जेल भेजा गया. जब यह खबर शिबू सोरेन को मिली, उन्होंने आंदोलन को और तेज किया. सीसीएल अधिकारियों का घेराव और चक्का जाम हुआ. 25 आंदोलनकारियों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन शिबू सोरेन के नेतृत्व में सभी को बिना शर्त रिहा कराया गया और मुकदमे भी वापस लिये गये. यह कहानी सिर्फ एक नेता की नहीं, बल्कि उस विचारधारा की है, जो अन्याय के खिलाफ खड़ी होती है. शिबू सोरेन की सादगी, साहस और संघर्ष ने फागु बेसरा जैसे युवाओं को न केवल नेतृत्व का पाठ पढ़ाया, बल्कि उन्हें झारखंड आंदोलन का हिस्सा बना दिया…………………………………………………..
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है