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AI Use Caution: मशीन बन रही टीनएजर्स की बातों की हमराज, यहां खतरा बड़ा है

AI Use Caution: आज के किशोर अपनी भावनाएं चैटजीपीटी जैसे एआई चैटबॉट्स से साझा कर रहे हैं. विशेषज्ञों ने इसे मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक बताया है. जानिए क्या है इसका असर और समाधान.

AI Use Caution: स्टोरी हाइलाइट्स

  • किशोर अपनी भावनाएं चैटजीपीटी जैसे एआईचैटबॉट्स से साझा कर रहे हैं
  • शिक्षकों और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इसे खतरनाक आदत बताया
  • बच्चों में वास्तविक संवाद की क्षमता घट रही है
  • एआई चैटबॉट्स केवल वही कहते हैं जो यूजर सुनना चाहता है.

आज के डिजिटल युग में किशोर तेजी से चैटजीपीटी जैसे एआई चैटबॉट्स से भावनात्मक संवाद करने लगे हैं. वे अपनी निजी भावनाएं, चिंताएं और विचार इन तकनीकी साथियों से साझा कर रहे हैं, जिन्हें वे कभी-कभी अपने सबसे भरोसेमंद दोस्त मानने लगते हैं. हालांकि यह प्रवृत्ति तकनीकी रूप से उन्नत लग सकती है, लेकिन शिक्षकों और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इसे एक खतरनाक आदत बताया है. उनका मानना है कि इससे किशोरों की वास्तविक संवाद क्षमता कमजोर हो रही है, और वे आभासी दुनिया में भावनात्मक भ्रम का शिकार हो सकते हैं.

स्थिति की गंभीरता को इन बातों से समझें

  • किशोरों में प्रशंसा पाने की लालसा बढ़ रही है
  • वे असली जीवन में संवाद करना भूल रहे हैं
  • एआई चैटबॉट्स से जुड़ाव एक भावनात्मक भ्रम है
  • इससे मानसिक विकास पर नकारात्मक असर पड़ सकता है.

यह लेख इस बदलते व्यवहार के पीछे की मनोवैज्ञानिक चिंताओं को उजागर करता है और समाधान के रूप में अभिभावकों और शिक्षकों की भूमिका को रेखांकित करता है.

क्या कह रहे हैं एक्सपर्ट्स?

मनोचिकित्सक डॉ लोकेश सिंह शेखावत का कहना है कि एआईचैटबॉट्स को इस तरह डिजाइन किया गया है कि वे यूजर्स से लंबी बातचीत करें. जब कोई किशोर अपनी गलत सोच साझा करता है, तो चैटबॉट उसे सही ठहराने की कोशिश करता है. बार-बार ऐसा होने पर किशोर उस गलत सोच को ही सच मानने लगता है.

स्कूल की प्रधानाचार्य सुधा आचार्य ने बताया, स्कूल वह स्थान है जहां बच्चे सामाजिक और भावनात्मक कौशल सीखते हैं. लेकिन अब बच्चे अपने फोन को ही सुरक्षित साथी मानने लगे हैं. चैटजीपीटी जैसी तकनीकें पूरी तरह गोपनीय नहीं होतीं – उनसे की गई बातचीत कहीं और भी पहुंच सकती है.

क्यों है यह चिंता का विषय?

किशोरों में हर बात पर प्रशंसा पाने की लालसा बढ़ रही है

वे असली जीवन में संवाद करना भूल रहे हैं

डिजिटल चैटबॉट्स से भावनात्मक जुड़ाव एक भ्रम है

इससे मानसिक विकास पर नकारात्मक असर पड़ सकता है.

समाधान क्या हो सकता है इसका?

अभिभावकों और शिक्षकों को बच्चों से नियमित संवाद करना चाहिए

स्कूलों में डिजिटल साक्षरता और भावनात्मक शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिए

बच्चों को वास्तविक सामाजिक अनुभवों से जोड़ना जरूरी है.

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Rajeev Kumar
Rajeev Kumar
राजीव, 14 वर्षों से मल्टीमीडिया जर्नलिज्म में एक्टिव हैं. टेक्नोलॉजी में खास इंटरेस्ट है. इन्होंने एआई, एमएल, आईओटी, टेलीकॉम, गैजेट्स, सहित तकनीक की बदलती दुनिया को नजदीक से देखा, समझा और यूजर्स के लिए उसे आसान भाषा में पेश किया है. वर्तमान में ये टेक-मैटर्स पर रिपोर्ट, रिव्यू, एनालिसिस और एक्सप्लेनर लिखते हैं. ये किसी भी विषय की गहराई में जाकर उसकी परतें उधेड़ने का हुनर रखते हैं. इनकी कलम का संतुलन, कंटेंट को एसईओ फ्रेंडली बनाता और पाठकों के दिलों में उतारता है. जुड़िए [email protected] पर

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