मुंगेर. पंडित नीलमणि दीक्षित ने कहा कि शूर्पणखा ने ही रावण द्वारा सीता हरण की पृष्ठभूमि तैयार की थी. उसने सभी राक्षसों को नष्ट करने की प्रतिज्ञा की थी. क्योंकि उसके पति को रावण ने मार डाला था. श्रीराम द्वारा खर और दूषण का वध करवाने के बाद वह लंका गयी व रावण को तब तक उकसाया जब तक उसने श्रीराम से शत्रुता की शपथ नहीं ले ली. उन्होंने यह बात संन्यासपीठ पादुका दर्शन में चल रहे श्रीराम कथा के सातवें दिन शनिवार को रावण द्वारा माता सीता के अपहरण का प्रसंग सुनाते हुए कही. कहा कि अपनी योजना को अंजाम देने के लिए रावण ने मारीच की मदद लेने का फैसला किया. मारीच ने रावण को सचेत करते हुए कहा कि श्रीराम अत्यंत बलवान है, उन्हें मामूली मत समझो. विश्वामित्र आश्रम में श्रीराम ने एक ही वाण से मारीच को लंका तक फेंक दिया था. वह छह महीने तक मुर्छित रहा था. अहंकारी रावण ने मारीच की एक न सुनी व मारीच को उसे मृत्यु का भय दिखाया. मारीच ने सोचा कि रावण के हाथों मारे जाने से अच्छा है श्रीराम से मुक्ति पाना और फिर वह स्वर्ण मृग बनने को राजी हो गया. रावण ने साधू का वेष धारण कर छल माता सीता का अपहरण कर लिया. रथ में बैठाकर आकाश मार्ग से लंका जाने लगा. उसे आकाश मार्ग से जाता देख गिद्धराज जटायु ने उसे ललकारा. रावण ललकार को अनसुना कर भागे जा रहा था तो जटायु ने अपनी चोंच से रावण के केश पकड़ कर उसे रथ से उठाया और जमीन पर पटक दिया. फिर अपनी चोंच और नखों से उसके शरीर को इतना जख्मी कर दिया कि वह मूर्छित हो गया. जटायु चाहता तो रावण का प्राण हर लेता. परंतु यह धर्मयुद्ध के विरुद्ध होता. रावण ने मूर्छा टूटने पर छलपूर्वक अपनी तलवार से जटायु के पंख काट दिये. माता सीता को पुन: रथ पर बैठकर लंका ले गये. जटायु के प्राण त्याग के प्रसंग को पंडित दीक्षित ने बड़े ही मार्मिक ढंग से बताते हुए कहा कि श्रीराम जटायु को अपनी गोद में बैठाकर वरदान मांगने को कहा, लेकिन जटायु ने केवल निश्छल भक्ति मांगी. तब भगवान ने उन्हें चतुर्भुज रूप देकर अपने धाम भेजा. इस प्रसंग के संदर्भ में पंडित दीक्षित ने सूरदास का वह पद सुनाया, जिसमें जानकी का हनुमान से जटायु के बारे में मार्मिक संवाद है. उसक बाद उन्होंने शबरी के चरित्र और प्रभु से मिलन का प्रसंग भावपूर्ण अंदाज में प्रस्तुत किया.
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