मुंगेर पंडित नीलमणी दीक्षित ने कहा कि बिना सत्संग के भगवान नहीं मिलते और बिना भगवत्कृपा के सत्संग नहीं मिलता. रामचरित्र मानस में एक विशेषता यह है कि सत्संग की महिमा किसी संत ने कही, बल्कि लंकिनी जैसे तामसी पात्रों ने जिसने क्षण भर के सत्संग कके सुख को तीनों लोको के सुख से श्रेष्ठ बताया. जो सत्संग की महिमा है, वही कथा की महिला है. क्योंकि दोनों एक समान है. ये बातें संन्यास पीठ पादुका दर्शन में चल रहे राम कथा के छठे दिन शुक्रवार को सत्संग की महिमा पर प्रकाश डालते हुए कही. उन्होंने भगवान श्रीराम के अगस्त्य मुनि ससे मिलन की चर्चा करते हुए कहा कि श्रीराम को पंचवटी में वास करने का निर्देश मिला. वहां उनकी गिद्धराज जटायु से भेंट होती है और जटायु-राम का पिता-पुत्र संबंध पुन: जागृत होता है. पंचवटी में राम-लक्ष्मण संवाद का प्रसंग भी आता है. जिसे कई विद्धान और व्याख्याकार लक्ष्मण गीता भी कहते है. यहां भगवान राम तत्व को संक्षेप में समझाते हुए कहते है कि मैं और मेरा का भाव माया है. जबकि तू और तेरा का भाव भक्ति है. जब सब कुछ ईश्वरमय है, सब कुछ ईश्वईश्वर का है, यह भाव प्रबल हो जाता है तब भक्त माया से विमुख होकर भगवान के सम्मुख हो जाता है. उन्होंने रामचरित्र मानस के पात्रों के बारे में प्रचलित भ्रांतियों का भी खंडन किया. उदाहरण स्वरूप लोग लक्ष्मण को क्रोधी स्वभाव वाला मानते है, लेकिन पंडित दीक्षित ने उनके प्रसंगों और चौपाइयों का संदर्भ देते हुए सिद्ध किया कि लक्ष्मण भक्ति मार्ग पर अग्रसर कराने वाले है. यदि उन्होंने कहीं पर रोष प्रकट भी किया है तो केवल वहां जब प्रभु श्रीराम पर कोई आक्षेप आया है. इसी तरह लोग परशुराम को क्रोधी, विकराल स्वरूप को वासतविक मान लेते है. जिन्होंने पृथ्वी को 21 बार क्षत्रियों से विहीन किया. पर वास्तव में परशुराम के चरित्र का मुख्य गुण है उनकी पिता के प्रति संपूर्ण आज्ञाकारिता. उन्होंने शुर्पनखा के चरित्र के अल्पविदित पक्ष को भी उजतागर किया, जहां उसने राक्षसों के नाश की प्रतिज्ञा की थी. मौके पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु नर-नारी मौजूद थे.
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